वन विभाग ने काम कराने के बाद साल भर से मजदूरों को नहीं दी मजदूरी

Chhattisgarh Crimes

पत्रकार के दखल के बाद नगदी बाँटने लगा संबंधित जिम्मेदार मजदूरों को राशि

 

पूरन मेश्राम/मैनपुर। जिम्मेदार वन अधिकारियों के द्वारा खुलेआम सरकारी राशियों का बंदर बाट करते हुए शासकीय भवन निर्माण में लगे बेबस लाचार मजदूरों का मजदूरी राशियों का भुगतान नहीं किया जाना। माफ करने लायक भी नहीं है।शासन प्रशासन ऐसे अधिकारियों पर शिकंजा कसते हुए जांच पड़ताल किये जाने के बाद पता चलता है कि बेहिसाब संपत्ति मोटर गाडी़ बंगला आखिर कैसे,,,,,,अन्यथा ऐसा ही खुलेआम कमीशन खोरी का धंधा चलते रहता है।

बताना लाजमी है कि उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व वन परिक्षेत्र तौरेंगा का एक नमूना,,, क्षेत्र भ्रमण के दौरान हमारे गरियाबंद जिला ब्यूरो पूरन मेश्राम को शोषित पीड़ित वंचित मजदूरों के द्वारा बताया गया कि गरीबा और उड़ीसा सीमा पर कक्ष क्रमांक 1202 में 10 महीना पूर्व एंटी पोंचिंग कैंप भवन निर्माण उस समय के तात्कालिक रेंजर राकेश कुमार परिहार, डिप्टी रेंजर गौरी शंकर भोई, दैनिक श्रमिक विमल कुमार नेताम के द्वारा भवन निर्माण कराई गई थी जिसमें कार्यरत मजदूरों का भुगतान साल भर बीतने के बाद भी नहीं हो पाई है। जिसके कारण हम लोग बेहद परेशान और आक्रोश में हैं। प्रथम दृष्टिकोण से भवन निर्माण जहां कराई गई है। वहां पर मद स्वीकृत राशि लागत राशि वर्ष के जानकारी हेतु पारदर्शिता बोर्ड भी नहीं लगाई गई है। हर एक शासकीय निर्माण कार्यों पर पारदर्शी बोर्ड का होना जरूरी है।ज्ञात हो कि

केंद्र सरकार के द्वारा आवास हीन परिवारों को प्रधानमंत्री आवास स्वीकृति के बाद पूर्ण होने पर पारदर्शी बोर्ड दिखाना पड़ता है।लेकिन वन विभाग के इस भवन निर्माण में कहीं कोई बोर्ड का नहीं दिखना समझ से परे लगता है। मजदूरों के अनुसार भुगतान की विधि में भी एकरूपता नहीं लगता है नगदी एवं बैंक खातों से किया गया है जो काम ही नहीं किए हैं उसके खाते में भी राशि डालकर भयंकर शासकीय राशियों का दुरुपयोग करने का अंदेशा है। हमारे जिला ब्यूरो पूरन मेश्राम के द्वारा 13/ 11/ 2025 को एसडीओ टाइगर रिजर्व के नाम उक्त भवन निर्माण में हुए गड़बड़ियों का निष्पक्ष जांच व जांच उपरांत प्रमाणित छाया प्रति उपलब्ध कराने एवं मजदूरों के लंबित भुगतान राशि को दिलाने मांग पत्र सौंपी गई तब तत्कालीन रेंजर, डिप्टी रेंजर एवं दैनिक श्रमिक हरकत मे आया तब जाकर मजदूरों के लंबित राशि को आनन फानन मे नगदी भुगतान किया जाने लगा उसमें भी और मजदूर भुगतान के लिए बचे होंगे ऐसा अनुमान है। जब कोई पत्रकार/ समाजसेवी/ जनप्रतिनिधि/ सामाजिक नेता ग्रामीणों के समस्याओं को लेकर विभाग में जाए तब उनका काम बने फिर जिम्मेदारों का औचित्य ही क्या है।

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