पर्यटन की अपार संभावनाओं को अपने कोख में समेटे सदियों खड़ा है मलेवाडोंगर

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किशन सिन्हा \ छुरा

छुरा। छत्तीसगढ प्रदेश प्रकृति की गोद में बसा एक ऐसा राज्य हैं जिसकी पहचान वहां के जल जंगल और जमीन से होती है, आज बात रायपुर संभाग के गरियाबंद जिले की करतें हैं जो पर्यटन के क्षेत्र में अपना कदम तेज़ी से बड़ा रहा है, जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका विश्व प्रसिद्ध आकार की दृष्टि में सबसे बड़े शिवलिंग दर्जा प्राप्त भूतेश्वर महादेव पारागांव, जतमई माता मंदिर गायड़बरी, घटारानी माता मंदिर जमाही, चिंगनापगार वाटरफाल बारूका आदि हैं जिन्हें देखने व प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने लोग दूर दूर से आते हैं।

इसी कड़ी में आज चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय गरियाबंद जिला के क्षेत्रफ़ल की दृष्टि में बड़े वनों व पहाड़ियों की श्रृंखला मलेवाडोंगर की जहां रसेला के समीप मुड़हीपानी से जंगल की ओर कुछ दूर चलने पर एक पहाड़ी मिलता हैं जहां रानीमाई केरापानी नामक धार्मिक स्थल है इस जगह की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां के रानी माई मंदिर प्रांगण में केले व डुमर वृक्ष के जड़ों के पास से स्वच्छ शीतल जल का प्रवाह बिते कई वर्षों से बारो महीने निरन्तर होता आ रहा है इस जल को एकत्रित करने हेतु आस पास के छोटे बड़े पत्थरों को मिला कर दो कुण्ड तैयार किया गया है जिसे नवरात्र व विभिन्न औसरों पर जब लोग यहां उपस्थित होते हैं उनके खाने और पीने पुरी व्यवस्था संचालित किया जाता है।

वहीं एक ओर गृष्म कालीन भीषण गर्मी के माहौल में जहां ना सिर्फ छत्तीसगढ़ प्रांत अपितु समग्र भारत वर्ष पेयजल के संकट से ग्रसित तथा भूमिगत जल स्तर की तेजी से नीचे जाने की समस्या से त्रस्त नजर आता है तो दूसरी ओर किसी पहाड़ी इलाके में शक्त चटानों के बीच केले के पेड़ का उगना व उसके जड़ से स्वच्छ मीठे जल का रिसाव होना केरापानी में मौजूद मंदिर रानीमाई के प्रति जनास्था का प्रत्यक्ष उदाहरण है, केरापानी से आगे पहाड़ी का सफर तैय करने पर जमीनी स्तर से लगभग एक हजार फिट कि ऊंचाई पर लम्बे चौड़े वर्ग क्षेत्रफ़ल में फैला पठार दिखाई देता हैं जिसका मुख्य आकर्षण वर्षाकाल में हरे भर वनस्पति व उनके बीच दईहान में चरते गाय बैल और भैसों का समुह तथा उनका निवास स्थान होता है।

साथ ही स्थानीय निवासियों का दावा है कि “इस मलेवाडोंगर में छोटे बड़े मिलाकर कुल 57 बरसाती झरने का श्रृंखला है जिसके प्रत्यक्ष दर्शन अद्भुत और अलौकिक नजर आतें हैं।” यदि इन प्राकृतिक स्थलों को सकार द्वारा संरक्षण दिया जाय, और इन तक पहुंचने के मार्ग को सुगम बनाया जाय तो यह एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में अपना पहचान बना सकता है जिससे यहां के मूलनिवासी व व्यापारियों का आर्थिक विकास सम्भव है।

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