हाथी के हमले से बुजुर्ग की दर्दनाक मौत, वन विभाग 10 दिन के भीतर दे मुआवजा राशि : टीकम सिंह नागवंशी

Chhattisgarh Crimes

पूरन मेश्राम/ मैनपुर। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व बफर जोन वन परिक्षेत्र तौरेंगा के गांव जरहीडीह में बीते बुधवार को हाथी के हमले से बुजुर्ग की दर्दनाक मौत हो गई थी। हाथी इतना आक्रमक तरीके से बुजुर्ग पर वार किया कि बुजुर्ग का सिर,हाथ,पैर,धड़ अलग-अलग टुकड़ों में बट गया था। इस संबंध में महेंद्र नेताम गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जिला गरियाबंद के प्रभारी एवं संरक्षक अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद जिला गरियाबंद एवं टीकम नागवंशी प्रवक्ता किसान मजदूर संघर्ष समिति उदंती सीतानदी राजापड़ाव क्षेत्र ने संयुक्त रूप से प्रेस विज्ञप्ति में कहीं कि इसमें साफ-साफ वन विभाग की जिम्मेदार टीम की लापरवाही झलकती है।

ग्रामीणों को इसकी जानकारी नहीं दी गई सही समय में जानकारी मिल गई होती तो सहज सरल उम्रदराज बुजुर्ग को गांव के ग्रामीण एवं परिवार वाले बचा लेते लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

लापरवाह विभाग के जिम्मेदारों के ऊपर कड़ी से कड़ी कार्यवाही होना चाहिए। बुजुर्ग के परिवार को तत्कालीन सहायता राशि वन विभाग के द्वारा 25000 रूपये दी गई है उसे उचित मुआवजा राशि 10 दिन के भीतर देवे आगे कहा कि हाथी द्वारा किसी व्यक्ति को मारे जाने पर एक करोड़ की मुआवजा राशि के मांग के साथ-साथ हाथी गरियाबंद,महासमुन्द,धमतरी जिले में आदमखोर हो रहे हैं। फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वनांचल क्षेत्र के गांव एवं जंगलों में घुसकर फसल,मकान, झोपड़ी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कईयो किसान अपनी खेती मकान छोड़ चुके हैं। परंतु इस पर सरकार मौन है उचित मुआवजा ना देकर केवल आपदा राशि से खानापूर्ति कर रहे हैं। हम मांग करते हैं कि किसी भी व्यक्ति को हाथी अगर मार देता है तो उसके परिजन को सहायता राशि एक करोड़ के मुआवजा दे। खेती छोड़ चुके किसानों को प्रति एकड़ आमदनी के हिसाब से उनको क्षतिपूर्ति राशि देवे।
फसलों को नुकसान पहुंचाने पर प्रति एकड़ 40000 रुपये की क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करें साथ ही घर मकान को छोड़ने पर उचित मुआवजा दें।

सरकार प्रभावित क्षेत्र में निवास करने वाले सभी ग्रामीणों को पक्का मकान बना कर दें। हाथियों को उनके मूल निवास जंगल तक पहुंचाने का प्रबंध सरकार करें हाथी के मूल निवास क्षेत्र में खनिज उत्खनन एवं जंगलों की कटाई पर शीघ्र रोक लगाई जाए जिससे हाथियों को अपने निवास क्षेत्र से पलायन करने की जरूरत ना हो।

जिसके कारण नैसर्गिक रूप से जल जंगल जमीन पर निवासरत ग्रामीणों पर हो रहे हमला को रोका जा सके। अगर समय पर शासन प्रशासन गंभीर मामले पर उचित कार्यवाही नहीं करती है तो समिति आंदोलन का रुख अख्तियार करेगी।

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