मैं अपनी जान बचाने भागता रहा, चिल्लाता रहा पर कोई वन रक्षक बचाने नहीं आया
रायपुर। 18 जुलाई शनिवार को मैं रोज की तरह अपने घर (जंगल) में स्वच्छंद विचरण कर रहा था। प्रकृति की हरियालियों के बीच अटखेलियां ले रहा था। कितना तरोताजा महसूस कर रहा था। मैं अचानक मेरे घर (जंगल) में बाहरी कुत्तों के झुंड का प्रवेश हो जाता है। मुझे स्वच्छंद रूप से विचरण करते हुए देख मुझ पर कुत्तों का झुंड हमला करने की नियत से टूट पड़ते हैं। मैं उनसे अपनी जान बचाने जंगल में ही इधर-उधर भागने लगता हूं, कुत्तों के झुंड को चकमा देने कभी झाड़ियों के बीच छुपता तो कभी अवैध कटाई के कारण मैदान बन चुके जंगल में ठुठों के बीच दौड़ता हूं। पर कुत्तों के झुंड की पैनी नजर मुझ पर लगातार बनी रहती है, वे मेरे पीछे लगातार पड़े रहते हैं, ऐसे में मैं अपनी जान बचा पाऊंगा यह मुझे नामुमकिन लगता है। भय और खौफ के बीच मुझे अचानक याद आता है कि हमारी रक्षा के लिए तैनात वनकर्मी मेरे घर (जंगल) के करीब ही गायडबरी में रहते हैं, वे मेरी जान अवश्य ही बचा लेंगे। इसी को ध्यान में रखकर मैं वन रक्षकों की ओर चीखे पुकारते अपनी जान की सलामती मांगते भागता हूं। मुझे गांव की ओर भागता देख जैसे ही मैं गांव के सरहद पर पहुंचता हूं, कुत्तों का झुंड आने वाले खतरे का आभास पाकर रूक जाते हैं पर मैं अपनी जान बचाने लगातार भागता रहता हूं कि वन रक्षक मुझे देख मुझे बचा लेंगे पर यह क्या मैं तो अपनी जान जिसके दम पर बचाने भागा था वो तो अपने मुख्यालय से ही नदारत थे। एक भी वन रक्षक अपने मुख्यालय में नहीं था। यह नजारा देख मेरी चिंता और बढ़ गई। मैं जंगल में कुत्तों से जान बचाकर ऐसे स्थान पर पहुंच गया था जहां मेरी जान को और अधिक खतरा था। जैसे ही गायडबरी के शिकार किस्म के ग्रामीणों की नजर मुझ पर पड़ी वो मेरा शिकार करने मुझे दौड़ाने लगे। मैं भी बदहवाश वन रक्षकों को आवाज देते अपनी जान बचाने गांव में ही इधर-उधर भगता रहा, पर भाग-भाग के मैं इतना थक गया था कि और हिम्मत नहीं थी, भागने की मुझमे। जैसे ही मुझे पानी से भरा तालाब नजर आता है मैं अपनी जान बचाने उसी में छलांग लगा देता हूं पर यह मेरा असफल प्रयास था। अपनी जान बचाने का ग्रामीण मुझे घेर कर अपने पास रखे हथियारों से शरीर पर हमला बोल देते हैं तब भी मैं अपना अंतिम प्रयास करता हूं और जोर-जोर से चीखता हूं ताकि मेरी चिख पुकार वन रक्षकों के कानों तक पहुंच जाये, पर मेरे अंतिम सासों तक हमारे रक्षक हमें बचाने नहीं आते हैं। आखिर कहा थे ऐ वन रक्षक जिन्हें हमारी रक्षा के लिए तैनात किया गया है।
यह उस नर हिरण का पुकार है जिसकी नृशंस हत्या 18 जुलाई को कर दिया जाता है। यहां पर हम आपको यह बता दें कि पांडुका वन परिक्षेत्र अंतर्गत आने वाले गायडबरी गांव में इस क्षेत्र का वन विभाग का मुख्यालय भी है और यहां पर एक डिप्टी रेंजर, दो फारेस्ट गार्ड को मुख्यालय गायडबरी में तैनात किया गया है। ये हैरान करने वाली बात है कि जिस जगह पर वन रक्षकों को तैनात किया गया है उसी गांव में एक नर हिरण का सरेआम कत्लेआम हो जाता है और वन रक्षकों के कानों में हिरण की चीख पुकार तक नहीं पहुंचती है।
वन विभाग ने सिर्फ छ: ग्रामीणों के खिलाफ कार्यवाही कर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली है। मृत हिरण की आत्मा प्रदेश के मुख्यमंत्री, वनमंत्री, वन विभाग के आला अधिकारियों से पुछ रहा है कि क्या मेरे हत्या के दोषी सिर्फ ग्रामीण थे? क्या वे वनरक्षक दोषी नहीं हैं जिनकी तैनाती गायडबरी वन परिक्षेत्र में की गई है? आज अगर वन रक्षक अपने मुख्यालय में होते, अपने ड्यूटी पुरी इमानदारी से करते तो क्या इस तरह सरेआम मेरी हत्या की जाती। मृत हिरण की आत्मा न्याय की गुहार लगा रही है, उसका कहना है कि सिर्फ मेरी हत्या की कार्यवाही में खानापूर्ति ना हो जो-जो इसके लिए जिम्मेदार हैं उन पर कार्यवाही हो। मुझे विश्वास है कि मेरी करूण वेदना को छत्तीसगढ़ के वन विभाग के मुखिया अवश्य सुनेंगे और मुझे न्याय जरुर देंगे।