जांजगीर-चांपा में भी बरसाने की तरह लट्ठमार होली खेली जाती

Chhattisgarh Crimesछत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा में भी बरसाने की तरह लट्ठमार होली खेली जाती है। यहां कुंवारी लड़कियां लाठियां लेकर पुरुषों पर बरसाती हैं। हालांकि यहां कि परंपरा का बरसाने से कोई संबंध नहीं है। यहां के लोगों का मानना है कि, इस तरह से होली खेलने से उन्हें कोई बीमारी नहीं होती है।

दरअसल, जिले के पंतोरा गांव में यह परंपरा पिछले 300 सालों से चली आ रही है। होली के 5वें दिन रंग पंचमी पर स्थानीय लोग लट्ठमार होली खेलते हैं। गांव के मंदिर से भगवान पर छड़ी मारकर इसकी शुरुआत की जाती है। इस दिन गांव से कोई राहगीर निकलता है, तो वह भी इसमें शामिल हो जाता है।जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर है पंतोरा गांव

पंतोरा गांव जिला मुख्यालय से करीब 40 से 45 किलोमीटर दूर है। लट्ठमार को स्थानीय भाषा में डंगाही होली कहा जाता है। डंगाही होली के दिन गांव की कुंवारी कन्याएं मंदिर में अभिमंत्रित बांस की छड़ियां लोगों पर बरसाती हैं। त्योहार के महत्व और आस्था का लोग विशेष सम्मान भी करते हैं।एक ही कुल्हाड़ी से कटने वाली छड़ी का इस्तेमाल

ग्रामीणों ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि पंतोरा गांव में विराजित मां भवानी मंदिर परिसर में रंग पंचमी के दिन हर साल पंतोरा के ग्रामीण जुटते हैं। कोरबा जिले के मड़वारानी के जंगल से बांस की छड़ी लेकर आते हैं। इसमें उसी छड़ी का उपयोग किया जाता हैं, जो एक ही कुल्हाड़ी में कट जाए। उसी छड़ी की पूजा की जाती है।

रंग पंचमी के दिन उस बांस की छड़ी की पूजा-अर्चना मां भवानी के सामने की जाती है। यह कामना की जाती है कि उनके गांव में कोई बीमारी ना फैले। इस छड़ी को बैगााओं से सिद्ध करवाया जाता है। कुंवारी लड़कियों से माता को 5 बार बांस की छड़ी स्पर्श कराई जाती है। फिर मंदिर परिसर के देवी-देवताओं पर भी बांस की छड़ी बरसाई जाती है।

रिश्तेदार भी होते हैं शामिल

पंतोरा गांव के ग्रामीणों के अनुसार इस लट्‌ठमार पर्व में स्थानीय रहवासियों के अलावा उनके रिश्तेदार भी शामिल होते हैं। उनके शामिल होने के पीछे एक आस्था है कि जो भी व्यक्ति गांव की कुंवारी कन्याओं से छड़ी खाएगा, वो साल भर बीमार नहीं होगा। इस खास वजह से रिश्तेदार भी आयोजन के दौरान गांव पहुंचते हैं।

मंदिर के बाहर तैनात रहती है टोली

पंतोरा गांव में रहने वाली कुमारी खुशबू ने बताया कि यहां भवानी मां में चढ़ी हुई छड़ी को पूजा के बाद यहां के बैगा (पंडित) कन्याओं को देते हैं। जिससे लड़कियां मंदिर के बाहर खड़े बैठे सभी बच्चे बड़ों को छड़ी के मारती हैं। वहीं, रास्ते में चलने वाले राहगीर भी यहां छड़ियों से मार खाने के लिए रुकते हैं। इसका कोई विरोध नहीं करता है और न कोई बुरा मानता है।