भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा नजारा देखने को मिला, जब किसी मॉडर्न मल्टीप्लेक्स थिएटर हरि बोल के नारों और भजन-कीर्तन से गूंज उठा। रायपुर के एक मॉल में स्थित मल्टीप्लेक्स में ‘महावतार नरसिम्हा’ मूवी शो के दौरान ISKCON (इस्कॉन) से जुड़े भक्तों ने परंपरागत वेशभूषा में शामिल होकर माहौल को आध्यात्मिक बना दिया।
इस दौरान भक्त पारंपरिक धोती-कुर्ता पहनकर, माथे पर तिलक लगाकर और कंठी माला पहनकर पहुंचे। मृदंग और करताल के साथ ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ के भजनों करते आए। स्पाइडर मैन भी कीर्तन करता नजर आया। लगभग 277 इस्कॉन भक्तों ने एक साथ यह मूवी देखी और इसे सनातन धर्म के प्रचार का सशक्त माध्यम बताया।
इस्कॉन ने मूवी को दिया पूरा समर्थन
इस्कॉन से जुड़े भक्तों का कहना है कि, ‘महावतार नरसिम्हा’ सनातन संस्कृति और मूल्यों को बढ़ावा देने वाली फिल्म है। इस्कॉन से जुड़े आयुष ने कहा कि, आज के समय में समाज में ऐसी फिल्में कम आ रही हैं। यह मूवी सनातन धर्म को सही रूप में प्रस्तुत करती है, इसलिए हम सब इसका बढ़-चढ़कर समर्थन कर रहे हैं।
25 जुलाई को रिलीज हुई ‘महावतार नरसिम्हा’ मूवी को दर्शकों से शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है। बुक माई शो पर फिल्म को 9.8 की रेटिंग मिली है। सोशल मीडिया पर भी लोग इसकी जमकर तारीफ कर रहे हैं।
क्या है फिल्म की कहानी ?
इस फिल्म की कहानी प्रह्लाद के इर्द-गिर्द घूमती है, जो भगवान विष्णु के परम भक्त हैं और जिनका सामना होता है उनके नास्तिक पिता हिरण्यकश्यप से, जिसे भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान मिला है। ट्रेलर में आस्था की दहाड़ दिखाई देती है, जब भगवान विष्णु के अवतार, महावतार नरसिम्हा का जन्म होता है, प्रह्लाद की रक्षा के लिए उनका अवतरण इस कथा को दिव्य बना देता है।
साउथ की ब्लॉकबस्टर फ्रेंचाइजी जैसे केजीएफ, कांतारा, सालार और बघीरा जैसी बड़ी फिल्में बना चुके प्रोडक्शन हाउस होम्बले फिल्म्स अब क्लीम प्रोडक्शंस के साथ मिलकर इस फिल्म को ला रहे हैं। इतना ही नहीं वह आगे भी भगवान विष्णु के दस दिव्य अवतारों की कहानी लेके आएंगे।
इसकी शुरुआत महावतार नरसिम्हा (2025) से हुई है। इसके बाद महावतार परशुराम (2027), महावतार रघुनंदन (2029), महावतार द्वारकाधीश (2031), महावतार गोकुलानंद (2033), महावतार कल्कि पार्ट 1 (2035) और महावतार कल्कि पार्ट 2 (2037) भी आएंगे।
प्रोडक्शन में तेजी के लिए AI का भी इस्तेमाल
‘फिल्म के लिए एनीमेशन का ही चुनाव इसलिए किया गया ताकि दर्शक किसी एक्टर की छवि में भगवान को न देखें, बल्कि शुद्ध स्वरूप में उनका अनुभव करें। इसे “रियलिस्टिक एनीमेशन’ का रूप दिया गया है, न कि कार्टून का, ताकि देखने वाले को लगे कि यह सजीव है। इस फिल्म को बनाते समय AI उतना प्रचलन में नहीं था लेकिन बाद में AI का इस्तेमाल किया गया है, खासकर प्रोडक्शन को तेज करने के लिए।