बस्तर जिले को अब भी नक्सल प्रभावित इलाके के रूप में पहचाना जाता है। यहां के युवा इंजीनियरिंग, एमबीए जैसी डिग्रियां लेने के बाद बड़ी कंपनियों में रोजगार के लिए पलायन कर रहे थे लेकिन अब कई युवा मल्टीनेशनल कंपनियों के पैकेज छोड़कर बस्तर लौट रहे हैं। यहां खेती-किसानी के क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छू रहे हैं।
जगदलपुर निवासी 28 साल के विवेक भारत ऐसे ही युवा हैं, जो इंजीनियर के बजाय अब किसान के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं। खेती में सफलता के पायदान चढ़कर और कई लोगों को रोजगार देकर अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
ऑटोमोबाइल कंपनी में 8 लाख का पैकेज
विवेक ने बताया- चार साल पहले मैंने भिलाई से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। फिर परिवार के कहने पर बड़े शहर की ओर रुख किया। गाेवा में एक ऑटोमोबाइल कंपनी में मुझे 8 लाख रुपए से अधिक का सालाना पैकेज भी मिला। लेकिन मेरी इच्छा नौकरी करने की नहीं थी।
बचपन से ही खेती के प्रति मेरी रुचि रही थी। मेरी दादी रोजाना मुझे खेत में ले जाती और खेती के बारे में बताती थी। खेती के फायदे भी बताती थी। मेरे अधिकतर दोस्त भी किसान परिवारों से हैं। इसीलिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बावजूद मैं खेती करने के बारे में सोचता था।
धान की फसल में लगी बीमारियां
आखिर ऑटोमोबाइल कंपनी का पैकेज छोड़कर मैंने खेती करने की इच्छा जताई तो परिवार ने भी हौसला बढ़ाया। हालांकि शुरुआत में मुझे काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। अनुभव नहीं होने से फसल का नुकसान हुआ। धान की फसल में तना छेदक, बंकी और झुलसा जैसी बीमारियां लग गई थी।
अमरूद में एंथ्रेक्नोज, उकठा रोग और छाल भक्षक कीट लग गए थे। चीकू में पत्ती धब्बा रोग, चपटा अंग रोग और सूटी मोल्ड रोग लग गए थे। इस पर कृषि विशेषज्ञों, अनुभवी किसानों से मिला। उनसे जानकारी लेकर कीटनाशकों का उपयोग किया।
इजराइली पद्धति से खेती से बढ़ा मुनाफा
शुरुआती दौर में भिंडी, करेले जैसी सब्जियों की खेती की, लेकिन बाद में जवाफुल, तुलसी मंजरी जैसी सुगंधित धान की खेती शुरू की। साथ ही आम, चीकू, अमरूद, शहतूत आदि फलदार पौधे लगाए। आखिर मुनाफा बढ़ने लगा। धान को छोड़कर बाकी फसलों की खेती मल्चिंग विधि से कर रहा हूं। इस इजराइली पद्धति से खेती करने में काफी फायदा मिलता है।