रायपुर की 6 इमारतों में अंग्रेजों को खदेड़ने योजनाएं बनीं

Chhattisgarh Crimesरायपुर की ऐतिहासिक इमारतें आज भी आजादी की कहानी अपने भीतर समेटे खड़ी हैं। इनमें सांसें नहीं, लेकिन जज्बात अब भी धड़कते हैं। आजादी के दौर में रायपुर भले ही एक छोटा कस्बा था, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के लिहाज से बेहद अहम था।

यहां कई इमारतें गुप्त बैठकों और योजनाओं का केंद्र बनीं। सेनानी इन्हीं ठिकानों पर मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाते थे।

जैतू साव मठ, नगर निगम की पुरानी बिल्डिंग, सप्रे शाला, टाउन हॉल, ब्राह्मणपारा की आनंद समाज लाइब्रेरी और को-ऑपरेटिव बैंक ऐसे प्रमुख स्थान थे, जहां स्वतंत्रता सेनानी योजनाओं पर चर्चा करते थे। इन जगहों ने गुलामी के ढलते सूरज को भी देखा और आजादी के उगते सूरज का स्वागत भी किया।

जैतू साव और दूधाधारी मठ-

रायपुर के पुरानी बस्ती में जैतू साव मठ और दूधाधारी मठ इन ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। इन मठों में पहले मुगलों और फिर अंग्रेजों के जमाने से धर्म के लिए आस्था दूर तक फैली थी। इतिहासकार बताते हैं कि 1933 में गांधी जी एक बार फिर छत्तीसगढ़ पहुंचे थे।

इस बार उनकी यात्रा दुर्ग से शुरू हुई। रायपुर में वे पं. रविशंकर शुक्ल के यहां गए। जैतूसाव मठ भी उनका ठिकाना बना। यहां एक छोटा सा प्रवचन मंच है, जहां चबूतरे से गांधी जी ने प्रवचन दिया था।राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जैतू साव मठ गढ़ रहा। यहां आजादी की लड़ाई के लिए बैठकें होतीं थी। राष्ट्रीय सेनानियों में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, शौकत अली, सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत अन्य लोग यहां पहुंचे थे। मंदिर परिसर 245 फीट लंबा और 150 फीट चौड़ा है। जहां बापू ठहरे थे, उस हिस्से को गांधी भवन नाम दिया गया है।

माधवराव सप्रे स्कूल

इतिहासकार डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि माधव सप्रे शाला की स्थापना वर्ष 1913 में हुई थी। शुरुआती दौर में इसे लारी स्कूल के नाम से जाना जाता था, जबकि आजादी के बाद इसका नाम माधवराव सप्रे के नाम पर रखा गया।

यह विद्यालय सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन का भी महत्वपूर्ण गढ़ था। यहां से न केवल कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी निकले, बल्कि बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी भी यहीं से शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़े।

महाकोशल कला वीथिका

राजनांदगांव के राजा घासीदास ने 1875 में रायपुर में अष्टकोणीय भवन का निर्माण कराया, जो आज महाकोशल कला वीथिका के नाम से जाना जाता है। आजादी से पहले यह म्यूजियम था, जिसमें राजा के शिकार की वस्तुओं के साथ शस्त्र भी सुरक्षित रखे जाते थे।

आनंद समाज लाइब्रेरी-

रायपुर शहर के बीचो-बीच कंकाली तालाब के पास स्थित आनंद समाज वाचनालय का इतिहास बहुत पुराना है। इस भवन का निर्माण 1908 में बैरमजी पेस्टन की मदद से करवाया गया।

इस जगह पर महात्मा गांधी ने 1920 और 1933 में आम सभा को संबोधित किया था। यहां आज भी गांधी से जुड़ी यादों को सहेज कर रखा गया है। आज वर्तमान में इसे हेरिटेज लुक देकर लाइब्रेरी हॉल का रूप दिया गया है।

टाउनहॉल, वंदे मातरम भवन-

कलेक्टोरेट परिसर में स्थित टाउनहॉल की पहचान आजादी की लड़ाई के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच चर्चा की जगह के रूप में हैं। इसकी आधारशिला साल 1887 में रखी थी। इस भवन को रायपुर जिला परिषद, नगर पालिका और जमीदारों के दिए चंदे से बनाया गया।साल 2008 में टाउनहॉल को वंदे मातरम सभा कक्ष का नाम दिया गया। जानकारी के मुताबिक, ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया के जन्म की सिल्वर जुबली यहीं मनाई गई थी। आज इस ऐतिहासिक सभा कक्षा का इस्तेमाल कई कार्यक्रमों के लिए होता है। इस दौरान इसे विक्टोरिया हॉल भी कहा जाता था।

संभाग आयुक्त कार्यालय-

कलेक्टोरेट परिसर से कुछ मीटर दूर स्थित रायपुर का संभाग आयुक्त कार्यालय कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अड्डा हुआ करता था। इस भवन का निर्माण 1885 के आसपास हुआ था। उस दौरान यह डिस्ट्रिक्ट काउंसिल भवन के नाम से जाना जाता था।

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई आंदोलनकारी यहां आकर बैठकें किया करते थे। और आजादी के आंदोलन को लेकर रणनीतियां बनाते थे। यहां पं. सुंदरलाल शर्मा, पं.रविशंकर शुक्ल, वामन राव लाखे जैसे कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आते थे। इसकी एक पहचान बौद्धिक जागृति के केंद्र के रूप में भी है। आज वर्तमान में इसे आयुक्त ऑफिस बनाया गया है।