वाहनों की नंबर प्लेट के लिए 0001 और 0007 जैसे फैंसी नंबर पाने की हमेशा होड़ सी मची रहती है

Chhattisgarh Crimesवाहनों की नंबर प्लेट के लिए 0001 और 0007 जैसे फैंसी नंबर पाने की हमेशा होड़ सी मची रहती है। इस तरह के 87 अलग-अलग नंबर ऐसे हैं जिन्हें फैंसी नंबरों की श्रेणी में रखा गया है। इन नंबरों को ऑनलाइन नीलामी के जरिए बेचा जा रहा है। इन नंबरों की नीलामी से परिवहन विभाग को हर साल औसतन 16 से 18 करोड़ मिल जाते हैं।

इसके बावजूद अनेक ऐसी भी फैंसी नंबर हैं जिन्हें लेने वाला कोई नहीं है। इसके बावजूद नई सीरीज शुरू होने पर इन नंबरों को फिर से फैंसी की श्रेणी में डाल दिया जाता है। नंबर बिकते नहीं हैं, इसलिए साल दर साल डंप होते जाते हैं। पिछले चार साल में ऐसे डंप फैंसी नंबरों की संख्या बढ़कर 32 हजार से ज्यादा हो गई है। अलबत्ता टॉप-10 फैंसी ऐसे नंबर हैं जो नई सीरीज शुरू होने के एकाध हफ्ते के भीतर बिक जाते हैं।

फैंसी नंबरों में सबसे ज्यादा डिमांड 0001 और उसके बाद 0007 की है। 0001 ऐसा फैंसी नंबर है जिसकी बोली ही एक लाख रुपए से शुरू होती है। बाकी नंबरों के लिए 80 हजार, 50 हजार और 30 हजार ऑफसेट प्राइस तय की गई है। पड़ताल में पता चला है कि फैंसी नंबरों की सबसे ज्यादा डिमांड राजधानी रायपुर में है। यहां फैंसी नंबरों की चाहत रखने वाले कई लोग तो नई सीरीज शुरू होने का इंतजार करते हैं।

सीरीज आने वाली होती है, तभी गाड़ी खरीदते हैं। ताकि अपनी गाड़ी के लिए मनपसंद नंबर ले सकें। रायपुर के अलावा बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई, धमतरी और राजनांदगांव में भी फैंसी नंबरों की जबरदस्त डिमांड है। राज्य के अन्य जिलों में भी फैंसी नंबर की चाहत रखने वाले हैं, लेकिन जो नंबर रायपुर में डंप हो रहे हैं, उन्हीं नंबरों के खरीददार बाकी जिलों में भी नहीं हैं।

0001 की बोली 1 लाख से तो 0007 की 80 हजार रु. से फैंसी नंबरों में 0001 की नीलामी 1 लाख से शुरू होती है। जबकि 0007, 0009, 0786 की बोली 80,000 रुपये से शुरू की जाती है। इनके अलावा 0002, 0003, 0004, 0005, 0006, 0008, 0100, 0404, 1111, 1234, 2222, 3333, 4444, 5555, 6666, 7777, 8888, 9999, 1000, 2000, 3000, 4000, 5000, 6000, 7000, 8000, 9000 नंबर की बोली 50,000 रुपये से शुरू की जाती है। बाकी फैंसी नंबरों की बोली 30 हजार से शुरू करना तय किया गया है। आमतौर पर 30 हजार की श्रेणी में जिन नंबरों को रखा गया है उन्हीं के खरीदार कम मिलते हैं।

2012-13 में किया गया था फैंसी नंबरों का चयन फैंसी नंबरों का चयन कर उन्हें नीलाम करने का निर्णय 2012-13 में लिया गया था। उसके पहले तक कुछ खास नंबरों के लिए रसूखदारों का हस्तक्षेप रहता था। कई बड़े राजनेता तक अफसरों को फोन करते थे। खींचतान बढ़ने के बाद ही ऐसे नंबरों को अलग किया गया जिनकी डिमांड ज्यादा रहती थी। उन्हें ऑनलाइन पंजीयन नंबर की सीरीज से हटाकर उनकी नीलामी शुरू की गई। फैंसी नंबरों की सीधे ऑनलाइन बुकिंग नहीं होती।

च्वाइस नंबर से भी कमाई लेकिन दोनों में अंतर च्वाइस नंबरों के लिए भी अतिरिक्त शुल्क वसूलता है लेकिन च्वाइस और फैंसी नंबरों में अंतर है। च्वाइस नंबर कोई भी हो सकते हैं। आमतौर पर कई लोगों का शुभांक होता है। उनकी गाड़ी का नंबर भी वही रहे। वाहनों की सीरीज शुरू होने पर जैसे जैसे गाड़ी रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचती है नंबरों का आवंटन होता जाता है। ऐसे में लोग जो नंबर चाहते हैं वो किसी को आवंटित न हो। इसके लिए उसे पहले से ब्लॉक कराया जाता है।