सरकार ने युवाओं के हाथों में थमाया था हथियार. 5 जुलाई 2011 वह तारीख है, जब सुप्रीम कोर्ट ने बस्तर में सलवा जुडूम अभियान पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने आदेश में साफ कहा था कि सलवा जुडूम जैसे अभियान लोकतंत्र और संविधान की आत्मा को ठेस पहुंचाते हैं। कोर्ट ने कहा कि आदिवासी युवाओं को बंदूकें देना और उन्हें नक्सलियों से लड़ाना असंवैधानिक है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि सभी स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (SPOs) से हथियार तुरंत वापस लिए जाएं। उन्हें पुलिसिंग से हटाकर ऑप्शनल रोजगार दिए जाएं। जजों ने यह भी कहा कि सरकार की यह नीति समाज में अविश्वास, भय और हिंसा बढ़ाती है।
अब रिटायर्ड जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। उनके नाम की घोषणा होते ही सलवा जुडूम अभियान फिर चर्चा में हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि 2011 में जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी के फैसले ने सलवा जुडूम को बंद कराकर नक्सलवाद को बढ़ावा दिया।
शाह ने 22 अगस्त को केरल में बयान दिया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया। अगर यह फैसला नहीं आता तो नक्सली चरमपंथ 2020 तक खत्म हो गया होता। वहीं शाह के बयान का विरोध करने वाले पूर्व न्यायाधीश दो फाड़ हो गए हैं। 56 पूर्व न्यायाधीशों ने एक बयान जारी कर राजनीतिक घटनाक्रम पर पूर्व न्यायाधीशों के एक समूह द्वारा प्रतिक्रिया देने की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि न्यायाधीशों को राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहिए।