बस्तर ओलंपिक के मंच पर मंगलवार को बैठक व्यवस्था को लेकर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का गुस्सा फूट पड़ा। सुकमा जिला पंचायत उपाध्यक्ष महेश कुंजाम, कांग्रेस पार्षद और नेता प्रतिपक्ष आयशा हुसैन ने प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोलते हुए कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया।
विवाद बढ़ने पर महेश कुंजाम समर्थकों के साथ सड़क पर बैठ गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। स्थिति बिगड़ती देख पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे। तहसीलदार अनिल ध्रुव ने लंबी समझाइश के बाद और भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति न होने के आश्वासन पर विरोध खत्म कराया।
भाजपा का कार्यक्रम बना सरकारी आयोजन- महेश कुंजाम
जिला पंचायत उपाध्यक्ष महेश कुंजाम ने कहा कि प्रशासन लगातार जनप्रतिनिधियों का अपमान कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि बस्तर ओलंपिक अब सरकारी न होकर भाजपा का कार्यक्रम बन गया है। आरक्षित कुर्सियों पर भाजपा कार्यकर्ताओं को बैठाया गया, जबकि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के लिए जगह तक नहीं छोड़ी गई।
उपाध्यक्ष कुंजाम ने कहा कि निमंत्रण कार्ड देकर बुलाया गया, लेकिन कार्यक्रम स्थल पर उपेक्षा और अपमान का सामना करना पड़ा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन का यह रवैया नहीं बदला गया तो आने वाले आयोजनों में तेज विरोध आंदोलन करेगी।
लोकतंत्र में भेदभाव अस्वीकार्य- आयशा हुसैन
पार्षद नेता प्रतिपक्ष आयशा हुसैन ने भी प्रशासन पर पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मंच पर हमारे लिए बैठने की जगह भाजपा कार्यकर्ताओं को बैठाया गया। प्रशासन की ओर से लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जा रही है। यह साफ दिखाता है कि प्रशासन राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह का भेदभाव अस्वीकार्य है।
ओछी राजनीति करने का प्रयास- भाजपा
भाजपा जिला अध्यक्ष धनीराम बारसे ने जनप्रतिनिधियों के आरोपों को राजनीतिक नाटक बताया। उन्होंने कहा, बस्तर ओलंपिक का शुभारंभ था, जिसमें प्रदेश के वन मंत्री केदार कश्यप शामिल हुए थे। ऐसे में उनका सम्मान किया जाना चाहिए, न कि विरोध।
विपक्ष की ओर से बैठक व्यवस्था को मुद्दा बनाना केवल अपनी पहचान बढ़ाने की कोशिश है। प्रशासन ने उचित व्यवस्था की थी, लेकिन विपक्ष ने इसे ओछी राजनीति में बदलने की कोशिश की।
मंच छोटा था, सीट आरक्षित थीं- तहसीलदार
विवाद पर तहसीलदार अनिल ध्रुव ने कहा, मंच छोटा होने की वजह से कुछ सीटें सीमित थी। सभी जनप्रतिनिधियों के लिए सीटें आरक्षित की गई थीं, हालांकि कुछ नाम टैग नहीं लगाए गए थे। भविष्य में इस तरह की स्थिति दोबारा न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा।