बस्तर में पहली बार सफेद चंदन की खेती

Chhattisgarh Crimesगेहूं, धान, सब्जियों की फसल में लागत और मेहनत के मुकाबले अच्छा मुनाफा नहीं मिलने के मद्देनजर बस्तर जिले के किसान विजय भारत ने नई पहल की है। जगदलपुर निवासी विजय जिले में पहले ऐसे किसान हैं, जिन्होंने बड़े पैमाने पर सफेद चंदन की खेती शुरू की है। इसके लिए उन्होंने सरकारी कार्यक्रम के तहत ट्रेनिंग भी ली है।

किसान भारत ने बताया, गेहूं और धान 25 से 30 रुपए प्रति किलो बिकता है जबकि सफेद चंदन की कीमत 25 से 30 हजार रुपए किलो होती है। गेहूं-धान और गन्ने की खेती में लागत ज्यादा आ रही थी, मेहनत भी पूरी करनी पड़ रही थी लेकिन मुनाफा कम ही मिल रहा था। इसलिए मैंने चंदन की खेती के बारे में जानकारी जुटाई।

सरकारी कार्यक्रम के तहत बेंगलुरु जाकर प्रशिक्षण भी लिया। चंदन के दो प्रकार होते हैं- लाल और सफेद। लाल चंदन की खेती दक्षिण भारत में और सफेद चंदन की खेती मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में होती है।

लाल चंदन पर सांपों संबंधी समस्या बताई जाती है जबकि सफेद चंदन पर यह परेशानी नहीं आती। इस पेड़ की ऊंचाई 10 से 15 फीट तक होती है। चूंकि चंदन एक परजीवी पौधा होता है इसलिए इसकी सफल खेती के लिए चंदन के साथ अरहर की खेती करना जरूरी होता है।

भारत ने बताया, चंदन के पौधे मैं मैसूर और भुवनेश्वर से लाया। कुछ पौधे वन विभाग से लिए। इन्हें अपनी बाड़ियों के साथ दंतेश्वरी व बालाजी मंदिरों और कुछ घरों में लगाया। यह प्रयोग सफल रहा। बाड़ी में कुल 150 पौधे लगाए हैं। इसकी खेती 20 जून से पहले करना फायदेमंद होता है। मेरे साथ गांव के 10 अन्य किसानों ने भी अपनी बाड़ियों में चंदन के पौधे लगाए हैं और 20 अन्य किसान पौधे लगाने की तैयारी कर रहे हैं।

भारत ने बताया, चंदन की खेती से किसान दोहरा फायदा उठा सकते हैं। चंदन को पकने में लगभग 10 से 12 साल लगते हैं और 15 साल में चंदन पूरी तरह तैयार हो जाता है। इस बीच किसान अंतरफसल (इंटरक्रॉपिंग) के जरिए अन्य फसलें ले सकते हैं।

जितनी लागत और मेहनत के बाद 15 साल में गेहूं-धान या सब्जियों की खेती से आमदनी होती है, उससे कई गुना कमाई एक बार चंदन की खेती में ही हो जाती है। इसके लिए खास प्रयास भी नहीं करने पड़ते। केवल पौधे लगाने से पहले खेत की दो-तीन बार जुताई कर मिट्‌टी को भुरभुरी बनाना पड़ता है।

इसके बाद खेत को समतल कर 10-10 फीट की दूरी पर डेढ़ फीट चौड़े और डेढ़ फीट गहरे गड्‌ढे खोदकर, गोबर खाद डालकर पौधे रोपे जाते हैं। इसमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि जिस जगह पौधे रोपे जा रहे हैं, वहां से पानी की निकासी की सही व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि ज्यादा पानी से पौधों को नुकसान पहुंचता है।