नई दिल्ली। लॉकडाउन के दौरान अंतरिम जमानत पर कैदियों को रिहा करने के अदालती फैसले को एक कैदी ने अपना कारोबार बना लिया। पुलिस के मुताबिक, उसने पहले खुद अंतरिम जमानत प्राप्त की और फिर जेल से बाहर आने से पहले ही अन्य कैदियों को जमानत दिलाने के नाम पर सौदेबाजी शुरू कर ली। इस कैदी ने कथिततौर पर उन कैदियों के घर के पते लिए और फिर उनके रिश्तेदारों को गंभीर बीमारी के फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट जारी करा लिए। पुलिस जांच में अब तक ऐसे 52 से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार की अदालत को बताया कि एक आरोपी की अंतरिम जमानत याचिका के साथ लगाए गए मेडिकल सर्टिफिकेट की जांच के दौरान पूरा मामला खुला। दरअसल, इस कैदी की पत्नी के गर्भाश्य में गांठ होने की बात कहकर तत्काल आॅपरेशन के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया गया था। अदालत के आदेश पर जांच अधिकारी जब इस मेडिकल सर्टिफिकेट की जांच करने पहुंचा तो पता चला कि जिस अस्पताल के नाम पर यह सर्टिफिकेट जारी है। वहां सिर्फ तीन बेड थे और वहां ना तो अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था थी और ना ही कोई आपरेशन की सुविधा। पुलिस के मुताबिक, यहां से शुरू हुई जांच से पता चला कि इसी एक डॉक्टर के नाम से दिल्ली की अलग-अलग जिला अदालतों में 52 से ज्यादा मुकदमों में कैदियों के रिश्तेदारों को गंभीर बीमारी व उनका तत्काल आपरेशन कराने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किए गए थे। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस कैदी की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है।
आरोपी डॉक्टर के लगातार संपर्क में था कैदी, सीडीआर से हुआ खुलासा
पुलिस का कहना है कि जिस कैदी ने धोखाधड़ी व जालसाजी का यह पूरा जाल बुना, उसके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य मिले हैं। यह कैदी नशीला पदार्थ खिलाकर बलात्कार व पॉक्सो के तहत वर्ष 2014 से तिहाड़ जेल में बंद था। हाई पावर कमेटी की सिफारिश पर इस कैदी को अदालत से अंतरिम जमानत मिल गई थी। हालांकि, आरोपी कैदी का कहना है कि वह इस पूरे प्रकरण में शामिल नहीं है, लेकिन पुलिस की तरफ से अदालत के समक्ष पेश किए गए सबूतों के मुताबिक जमानत मिलने के बाद से लगातार वह कथिततौर पर फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट जारी करने वाले डॉक्टर के संपर्क में था। पुलिस ने अदालत के समक्ष आरोपी के मोबाइल फोन का रिकॉर्ड (सीडीआर) पेश किया।
कैदियों के घर पहुंचाता था फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट
पुलिस का दावा है कि यह मुख्य आरोपी ही उन कैदियों के घर तक आरोपी डॉक्टर से फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाकर पहुंचाता था। इस कैदी ने जेल से बाहर आने से पहले ही इन कैदियों से जमानत दिलाने के नाम पर सौदेबाजी कर ली थी। उनके घर के पते भी ले लिए थे। पुलिस का कहना है कि जांच में वह साक्ष्य जुटा लिए गए हैं जिनमें पता चलता है कि वह खुद कैदियों के घर यह फर्जी सर्टिफिकेट देने जाता था।
आपराधिक साजिश की अतिरिक्त धारा भी जुड़ी
दिल्ली पुलिस की तरफ से अदालत को यह भी जानकारी भी दी गई कि शुरू में इस मामले में धोखाधड़ी व जालसाजी की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, लेकिन अब इस मामले में आपराधिक साजिश की अतिरिक्त धारा भी जोड़ दी गई है। अगर आपराधिक साजिश का आरोप साबित होता है तो आरोपियों को अधिकतम उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
डीएमए ने डॉक्टर की प्रैक्टिस पर लगाई हुई है रोक
दिल्ली मेडिकल काउंसिल ने आरोपी डॉक्टर के गैरकानूनी आचरण के मद्देनजर उसकी प्रैक्टिस पर 29 नवंबर 2020 तक रोक लगाई हुई है। बावजूद इसके इसी डॉक्टर के नाम से जारी मेडिकल सर्टिफिकेट दिल्ली की अलग-अलग जिला अदालतों में अंतरिम जमानत का आधार बनाते हुए लगाए गए हैं।