आवारा श्वान ने जवानों की बचाई जिंदगी, शहीदों जैसा दर्जा बना स्मारक

Chhattisgarh Crimesjagdalpur: आकाश मिश्रा@ श्वान अपनी वफादारी और स्वामी भक्ति के लिए जाना जाता है। वह खुद हर खतरा बर्दाश्त कर लेता है लेकिन आपने मालिक को कुछ नहीं होने देता। श्वान से जुड़ा एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें श्वान की वजह से कई जवानों की जान बच गई।दरअसल जनवरी 2024 में बीजापुर के धुर नक्सल प्रभावित मुतवेंडी में सीआरपीेएफ का कैंप स्थापित किया गया। इसी दौरान एक आवारा श्वान गांव से कैंप पहुंचा। कैंप के जवान उसे खाना देते थे और इसी तरह जवानों के साथ उसकी मित्रता हो गई। जवानों ने उसका नाम ‘किया’ रख दिया। कैंप से जब भी जवान सर्चिंग पर निकलते तो वह भी जवानों के साथ निकलता।
बारह से अधिक आईईडी डिटेक्ट कर चुका थाकैंप स्थापना को एक साल होने को था। किया और जवानों की मित्रता की भी सालगिरह आने वाली थी इससे पहले ही 30 दिसंबर 2024 को सर्चिंग के दौरान किया जंगल में प्लांट किए गए नक्सलियों की आईईडी की चपेट में आकर उसकी मौत हो गई। इस दौरान वह लगभग 12 से अधिक आईईडी डिटेक्ट करवा चुका था | उसकी मौत से दुखी जवानों को लगा कि किया नहीं होता तो शायद वे चपेट में आ सकते थे। इसके बाद जवानों ने किया की याद में कुछ अलग करने की सोची।
जवानों ने किया को प्रोटेक्टर और सेवियर बताते हुए स्मारक बनाया
किया की मौत के बाद जवानों ने मुतवेंडी कैंप के बाहर पत्थर का एक स्मारक बनाया। इस स्मारक में किया से जुड़ी यादें जवानों ने इंग्लिश में लिखी हैं। उसकी तस्वीर भी स्मारक में पेंट की गई है। जवानों ने किया को सेवियर और प्रोटेक्टर बताया है। यह स्मारक इसलिए खास है क्योंकि यह किसी शहीद जवान का नहीं बल्कि एक श्वान का है। समूचे बस्तर का यह अनूठा मामला है जिसमें एक श्वान को शहीद जैसा दर्जा दिया गया है।
जंगल में खतरे से हमेशा सचेत करता था किया
कैंप में पोस्टेड सीआरपीएफ के एएसआई मनोज कुशवाहा बताते हैं कि किया सालभर तक कैंप के जवानों के साथ रहा। ऐसा कोई दिन नहीं था जब वह सर्चिंग पर हमारे साथ ना गया हो। जंगल में अगर कोई खतरा महसूस होता तो वह हमें सचेत कर देता था, लेकिन जिस दिन वह आईईडी की चपेट में आया उस दिन उसने खतरा खुद के ऊपर ले लिया।