छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में मानसून की पहली बारिश ने प्राकृतिक खजाना उगा दिया है। साल वृक्षों के नीचे से फूटू मशरूम और बोड़ा निकलने लगे हैं। स्थानीय बाजारों में इनकी बिक्री शुरू हो गई है।
फूटू मशरूम को स्थानीय भाषा में ‘जंगल का सोना’ कहा जाता है। यह स्वाद और सेहत का अनमोल तोहफा माना जाता है। बाजार में एक गुच्छी फूटू मशरूम 150 रुपए में बिक रहा है। दुर्लभ बोड़ा पुराने नाप में 400 रुपए और पायली में 1600 रुपए तक बिक रहा है।
ये देशी सब्जियां सिर्फ मानसून की शुरुआत के 15 दिनों में ही मिलती हैं। सीमित उपलब्धता के कारण इनकी मांग हर साल बढ़ती जा रही है। पहले इनकी मांग सिर्फ बस्तर तक सीमित थी। अब रायपुर, भिलाई और जगदलपुर जैसे शहरों में भी इनकी मांग बढ़ी है।
अलग-अलग तरीकों से बनाते है
स्थानीय लोगों के मुताबिक, ये देशी मशरूम सामान्य कल्टीवेटेड मशरूम से कई गुना स्वादिष्ट होते हैं। इन्हें छौंककर, भूनकर या ग्रेवी के साथ बनाया जाता है। बारिश की मिट्टी और साल के पत्तों की प्राकृतिक खुशबू इनके स्वाद को और बढ़ा देती है।
साल में सिर्फ एक बार मिलता है
बस्तर के जंगल हर साल कुछ दिनों के लिए ही यह खास तोहफा देते हैं। इसलिए लोग कीमत की परवाह किए बिना इन्हें खरीदते हैं। स्वाद और सेहत का यह खास संयोग साल में सिर्फ एक बार ही मिलता है।