बिलासपुर में तहसीलदार के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट केस में TI तोप सिंह नवरंग को क्लीन चिट देकर दूसरे थाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई

Chhattisgarh Crimesछत्तीसगढ़ के बिलासपुर में तहसीलदार के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट केस में TI तोप सिंह नवरंग को क्लीन चिट देकर दूसरे थाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। यह मामला एक बार फिर से तूल पकड़ने लगा है।

तहसीलदार का आरोप है कि उनके केस की जांच करने वाले 3 एडिशनल SP ने दोषी टीआई को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब उन्होंने पूरे मामले की लिखित शिकायत DGP से की है, जिसमें बदला लेने के लिए टीआई को कोटा थाना भेजा गया है, जहां उसका भाई पदस्थ है।

दूसरी तरफ पुलिस अफसरों का कहना है कि एडिशनल एसपी स्तर के तीन अफसर केस की जांच कर चुके हैं, जिसके बाद ही टीआई को निर्दोष माना गया है। तहसीलदार अब बेवजह मामले को तूल दे रहा है। पूरा मामला सरकंडा थाना क्षेत्र का है। दरअसल, तहसीलदार पुष्पेंद्र मिश्रा ने एएसपी आईयूसीएडब्ल्यू गरिमा द्विवेदी, एएसपी सरकंडा उदयन बेहार, एएसपी सिटी राजेंद्र जायसवाल पर आरोपी को बचाने का आरोप लगाया है।

ये है पूरा मामला

मामला 17 नवंबर 2024 का है। सरकंडा थाना के तत्कालीन टीआई तोप सिंह नवरंग ने सीएसपी सिद्धार्थ बघेल के सामने थाने में तहसीलदार पुष्पेंद्र मिश्रा के साथ धक्कामुक्की और मारपीट की थी, इसका वीडियो भी सामने आया था।

वीडियो में टीआई नवरंग ने उन्हें धमकाया भी था। वीडियो और ऑडियो सामने आने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा था, जिसके आधार पर आईजी डा. संजीव शुक्ला ने टीआई को लाइन अटैच कर विभागीय जांच के निर्देश दिए थे।

झूठी FIR पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं, TI दोषमुक्त

तहसीलदार पुष्पेंद्र मिश्रा ने अब इस मामले की शिकायत DGP से की है, जिसमें बताया कि उस घटना के बाद उनके और भाई के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज कर दी। जिस पर उन्होंने मामले की शिकायत एसपी व कलेक्टर से की थी, जिस पर विभागीय जांच हुई।

इसमें कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को पुलिस अधिकारी होने के कारण समिति द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया। समिति की रिपोर्ट के आधार पर ‘आरोप प्रमाणित नहीं पाए जाने’ का हवाला देते हुए टीआई को दोषमुक्त कर पुनः थाने का प्रभार सौंप दिया गया। वहीं, तहसीलदार व उसके भाई के खिलाफ दर्ज झूठी एफआईआर पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

सीसीटीवी वीडियो और ऑडियो है सबूत

तहसीलदार ने थाना प्रभारी को बचाने का भी आरोप लगाया है। लिखित शिकायत में उन्होंने कहा है कि जांच अधिकारियों ने 2 बार तहसीलदार को बयान के लिए तय तारीख की सूचना जानबूझकर एक दिन बाद डाक से भेजी। इसके बाद जांच रिपोर्ट में उल्लेख कर दिया गया कि तहसीलदार जांच में रुचि नहीं ले रहे हैं।

सीसीटीवी फुटेज को भी नजरअंदाज कर किया गया है। पुलिस की एकतरफा कार्रवाई से परेशान तहसीलदार पुष्पेंद्र मिश्रा ने सीसीटीवी वीडियो व ऑडियो जैसे सबूत के साथ डीजीपी के साथ ही प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, कैबिनेट सचिव, मानवाधिकार आयोग, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री सहित कुल 13 स्थानों पर शिकायत भेजी है।

बड़े भाई की पोस्टिंग, बदला लेने बनाया थाना प्रभारी

शिकायत में तहसीलदार ने तोप सिंह नवरंग को कोटा थाना प्रभारी बनाए जाने पर भी आपत्ति जताई है। उन्होंने डीजीपी को बताया कि कोटा थाना क्षेत्र में उनके बड़े भाई की पोस्टिंग है, ऐसे में वहां की नियुक्ति द्वेषपूर्ण मानी जा सकती है, जिससे पुलिसिया दबाव में उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है।

आरोप है कि बदला लेने के लिए उन्हें कोटा थाने की जिम्मेदारी दी गई है। बता दें कि पुष्पेंद्र मिश्रा के बड़े भाई प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में कोटा ब्लॉक में सब इंजीनियर हैं।

सूचना के अधिकार में नहीं दी जानकारी

तहसीलदार ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत थाने की सीसीटीवी फुटेज, रोजनामचा, कैमरों के निरीक्षणकर्ता, प्रतिदिन की मॉनिटरिंग रिपोर्ट और पूरी जांच रिपोर्ट मांगी है, लेकिन विभिन्न कारणों से उन्हें अब तक यह जानकारी नहीं दी गई। इसको लेकर उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील भी कर दी है।

तहसीलदार ने इन अफसरों पर लगाए आरोप

  • एएसपी सिटी राजेंद्र जायसवाल: तहसीलदार को 4 मार्च को बयान के लिए बुलाया गया था, लेकिन पत्र (RC400456811IN) 5 मार्च को पोस्ट किया गया। दूसरा पत्र 6 मार्च को जारी कर 10 मार्च को बुलाया गया, पर यह भी 11 मार्च को रजिस्टर्ड डाक (RC400678671IN) से प्राप्त हुआ।
  • एएसपी सरकंडा उदयन बेहार: जांच अधिकारी ने 17 नवंबर की रात 2 से 4 बजे के बीच कैमरे में कैद सीसीटीवी फुटेज में ऑडियो नहीं होने की बात कही, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार थानों में नाइट विजन कैमरे ऑडियो-वीडियो सहित अनिवार्य हैं और इनकी निगरानी भी की जानी चाहिए।
  • एएसपी आईयूसीएडब्ल्यू गरिमा द्विवेदी: उन्होंने जांच के दौरान थाने की फुटेज में टीआई द्वारा की गई मारपीट और धक्का-मुक्की के स्पष्ट दृश्य को अनदेखा कर दिया। अस्पताल में पुलिसकर्मियों के किए गए दुर्व्यवहार को भी नजरअंदाज किया गया।