किरण ने बतौर डिफेंडर निर्णायक मुकाबले में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बता दें कि किरण यूरोपीय क्लब से खेलने वाली छत्तीसगढ़ की पहली महिला फुटबॉलर भी हैं।
थाईलैंड को 2-1 से हराया
क्वालिफाइंग टूर्नामेंट थाईलैंड में खेला गया। जहां ग्रुप-बी के सभी मुकाबलों में भारतीय टीम विजयी रही। रविवार को खेले गए मुकाबले में भारत ने मेजबान थाईलैंड पर 2-1 से जीत दर्ज की। इस मैच में मिडफील्डर संगीता बसफोर ने 2 गोल कर टीम को बढ़त दिलाई। लेकिन आखिरी समय तक डिफेंस को मजबूत बनाए रखने में किरण पिस्दा की भूमिका बेहद सराहनीय रही।
परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं
किरण के पिता महेश राम पिस्दा जिला संयुक्त कार्यालय में सहायक अधीक्षक हैं। उनकी मां मिलापा पिस्दा गृहणी हैं। बेटी की इस उपलब्धि पर भावुक और गर्वित हैं। किरण के माता-पिता का कहना है कि यह पल न केवल परिवार के लिए, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ जिले के लिए गौरव की बात है।
भारत से लेकर यूरोप तक दमदार सफर
- 2023 में क्रोएशिया के एक फुटबॉल क्लब से अनुबंध कर उन्होंने यूरोप में भी अपनी छाप छोड़ी।
- इससे पहले वे सेतू एफसी (चेन्नई) और केरल ब्लास्टर्स वुमन टीम का हिस्सा रह चुकी हैं।
- यूरोप में बिताए आठ महीने के अंतरराष्ट्रीय अनुभव ने किरण को नई ऊंचाई दी है।
देशभर में खेल चुकी हैं राष्ट्रीय मुकाबले
किरण 2014 से अब तक कटक, गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान-निकोबार जैसे दर्जनों राज्यों में आयोजित जूनियर, स्कूल और सीनियर नेशनल फुटबॉल प्रतियोगिताओं का हिस्सा रही हैं। 2022 में नेपाल में आयोजित साउथ एशियन चैंपियनशिप में भी उन्होंने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था।
गोल्डन गर्ल बनीं बालोद की किरण
फुटबॉल के प्रति समर्पण और कठिन मेहनत ने किरण को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया है। आज वे न केवल बालोद, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की पहचान बन चुकी हैं। आने वाले समय में उनसे भारतीय महिला फुटबॉल को और ऊंचाइयों पर पहुंचाने की उम्मीद है।
बालोद लौटने पर रोजाना 6 घंटे अभ्यास
किरण के पिता महेश पिस्दा जिला निर्वाचन कार्यालय में क्लर्क हैं। किरण ने खेल की शुरुआत बालोद के संस्कार शाला मैदान से की थी। जब भी वे बालोद आती हैं तो सुबह 5 से 8 और शाम 4 से 7 बजे तक नियमित अभ्यास करती हैं। उनके वार्ड में मैदान नहीं होने के कारण रोजाना 500 मीटर दूर अभ्यास करने जाती थीं।
सरकारी मदद नहीं, खुद के दम पर हासिल की पहचान
परिजनों और वार्डवासियों का कहना है कि किरण ने बिना किसी सरकारी सहायता के यह मुकाम हासिल किया है। शुरू से ही उबड़-खाबड़ मैदानों में मेहनत और लगन से अभ्यास करती रहीं। अब उनके कठिन परिश्रम का फल उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल रहा है।