छत्तीसगढ के बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को आज 7 प्रकार की जड़ी बूटी के पानी से स्नान कराया गया है। कतियार समाज के लोगों ने दिवाली के दिन यह विधान पूरा कर करीब 800 साल से चली आ रही परंपरा निभाई। मान्यता है कि ऐसा करने से शुद्धिकरण होता है। वहीं देवी के मंदिर में विशेष पूजा अर्चना कर सबसे पहले दिवाली का त्योहार मनाया गया है।
आज माता के दर्शन करने लोगों की भी भीड़ उमड़ी है। दरअसल, दिवाली से ठीक एक दिन पहले दंतेवाड़ा जिले के कतियार समाज के लोग जंगल से जड़ी बूटी लेकर आए। समाज की माने तो इस जड़ी बूटी का नाम नहीं बताया जाता और न ही इसकी पहचान बताई जाती है। यह जड़ी बूटी काफी रेयर है। यानी मुश्किल से ही जंगलों में मिलती है। जिसकी पहचान सिर्फ कतियार समाज के सदस्य ही कर पाते हैं।
इसलिए इसका नाम और पहचान गुप्त रखा जाता है। समाज के सदस्य शिवचंद कतियार ने बताया कि, हर साल की तरह इस साल भी एक दिन पहले 7 अलग-अलग तरह की जड़ी बूटी लाई गई। जिसे रात में हंडी में डालकर उबाला गया था। वहीं आज दिवाली के दिन इसी जड़ी बूटी पानी से देवी दंतेश्वरी समेत मंदिर में स्थित अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति को स्नान करवाया गया। शिवचंद कहते हैं कि ऐसा करने से शुद्धिकरण होता है।
जड़ी बूटी की फोटो-वीडियो लेना भी मना
जिस 7 जड़ी बूटी से स्नान करवाया जाता है इसकी फोटो-वीडियो बनाने की भी अनुमति नहीं होती। यहां तक कि जिस जगह इसे उबाला जाता है, वहां भी किसी दूसरे को प्रवेश करने नहीं दिया जाता है। समाज का कहना है कि ये परंपरागत रस्में हैं, जो पुरखों के समय से चली आ रही है, जिसे हम निभा रहे हैं। इसलिए गोपनीयता बनाए रखते हैं।
पुजारी बोले- रोग मुक्त के लिए भी आता है काम
मंदिर के पुजारी लोकेंद्र नाथ जिया ने कहा कि, देवी-देवताओं को स्नान करवाने के बाद जो जड़ी बूटी पानी बचता है उसे भक्तों को भी दे दिया जाता है। मान्यता है कि यदि किसी को कोई रोग हो या फिर कोई कष्ट हो तो वो भी इससे दूर हो जाता है।
बस्तर की आराध्य देवी हैं मां दंतेश्वरी
बता दें कि, मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी हैं। 52 शक्तिपीठों में से एक दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी का भव्य मंदिर है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। नवरात्र से लेकर नए वर्ष और किसी भी त्योहार के समय यहां परंपरा अनुसार अलग-अलग विधान किए जाते हैं।