 दिवाली की रात अचानक एक इमरजेंसी कॉल आया। बताया गया कि बिलासपुर से एक बच्ची रेफर की गई है। 9 साल की मासूम काव्या खेलते समय अचानक घंटी पर गिर गई थी। घंटी का ऊपरी हिस्सा उसकी बाई आंख से होते हुए सीधे दिमाग में घुस गया था। पहली नजर में केस बेहद जटिल था। सिम्स, बिलासपुर में उसका प्राथमिक उपचार किया गया था, लेकिन जख्म की गहराई और दिशा देखकर बच्ची को तुरंत रायपुर के सरकारी अस्पताल डीकेएस भेजा गया। हमारे पास बच्ची आई तो हमने तुरंत उसकी जांच की। सीटी स्कैन में साफ दिखा कि घंटी का हैंडल ऑर्बिट (आंख की हड्डी) को पार कर ब्रेन टिश तक चला गया है।
दिवाली की रात अचानक एक इमरजेंसी कॉल आया। बताया गया कि बिलासपुर से एक बच्ची रेफर की गई है। 9 साल की मासूम काव्या खेलते समय अचानक घंटी पर गिर गई थी। घंटी का ऊपरी हिस्सा उसकी बाई आंख से होते हुए सीधे दिमाग में घुस गया था। पहली नजर में केस बेहद जटिल था। सिम्स, बिलासपुर में उसका प्राथमिक उपचार किया गया था, लेकिन जख्म की गहराई और दिशा देखकर बच्ची को तुरंत रायपुर के सरकारी अस्पताल डीकेएस भेजा गया। हमारे पास बच्ची आई तो हमने तुरंत उसकी जांच की। सीटी स्कैन में साफ दिखा कि घंटी का हैंडल ऑर्बिट (आंख की हड्डी) को पार कर ब्रेन टिश तक चला गया है।
दिवाली का समय था, अस्पताल में कई डॉक्टर छुट्टी पर थे, लेकिन स्थिति गंभीर थी। ऐसे में डॉ. शिप्रा और उप अधीक्षक डॉ. हेमंत शर्मा ने तत्काल हमें बुलाया। कुछ ही मिनटों में ऑपरेशन टीम तैयार हो गई। हम दोनों ऑपरेशन लीड कर रहे थे। हमारे साथ डॉ. नमन चंद्राकर, डॉ. देवश्री ने सहयोग किया। आंख की रिपेयरिंग का महत्वपूर्ण हिस्सा डॉ. प्रांजल मिश्रा ने संभाला। सभी जांच के बाद अगली सुबह सर्जरी शुरू की गई। हमने निर्णय लिया कि यह ऑपरेशन दूरबीन से किया जाएगा, ताकि दिमाग के ऊत्तकों को कम से कम नुकसान पहुंचे।
सुप्राऑर्बिटल (भौंह के ऊपर) जगह पर चौरा लगाया गया। ट्रांसऑर्बिटल में (आंख के रास्ते) एंडोस्कोप की मदद से दिमाग में घुसे हुए फॉरेन बॉडी (घंटी के हैंडल) को चारों ओर से सावधानी से अलग किया गया। ये टुकड़ा लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर अंदर तक दिमाग में घुसा हुआ था। उसे धीरे-धीरे बाहर निकाला गया। इसके बाद दिमाग की बाहरी परत (ड्यूरा) को रिपेयर किया गया।
सर्जरी करीब चार घंटे चली। जब घंटी का हिस्सा सुरक्षित रूप से बाहर आया तो ओटी रूम में मौजूद हर किसी ने राहत की सांस ली। सबसे बड़ी खुशी तब हुई जब पोस्ट ऑपरेशन टेस्ट में बच्ची ने दोनों आंखों से साफ देखा और होश में आने के बाद मुस्कुराई। इतनी गंभीर स्थिति में भी बच्चों के आंख की रोशनी लौटना बिल्कुल चमत्कार जैसा था। दिमागी कार्यप्रणाली भी पूरी तरह सामान्य थी। यह सर्जरी न सिर्फ तकनीकी रूप से कठिन थी, बल्कि भावनात्मक रूप से भी चुनौतीपूर्ण थी।
ब्रेन हैमरेज, मिर्गी, पैरालिसिस के साथ आंख की रोशनी जाने का था खतरा
बच्ची जब डीकेएस पहुंची तो उसकी स्थिति को देखते हुए आंख की रोशनी जाने का अंदाजा हुआ था। इसके बाद सीटी स्कैन में जिस प्रकार घंटी का हैंडल अंदर घुसा था, उससे ब्रेन हैमरेज, पैरालिसिस के साथ ही मिर्गी के दौरे का भी खतरा बना हुआ था। लेकिन डॉक्टर भी यह देख आश्चर्य हुए कि बच्ची को इनमें से किसी भी प्रकार की समस्या नहीं हुई। घंटी इस तरह से उसके आंख और दिमाग के अंदर गई थी कि उसके ब्लड वेसल्स और नर्क्स को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।