
दरअसल, मैत्री बाग जू देश में सफेद बाघों के सबसे महत्वपूर्ण संरक्षण केंद्रों में गिना जाता है। 1990 में नंदन कानन से यहां पहला सफेद बाघ जोड़ा लाया गया था। तब से लेकर अब तक कुल 19 सफेद बाघों का जन्म इसी जू में हुआ है।
इनमें से 13 को राजकोट, कानपुर, बोकारो, इंदौर, मुकुंदपुर और रायपुर सहित छह राज्यों में भेजा जा चुका है। जया की मौत के बाद अब यहां 5 सफेद बाघ मौजूद हैं। देश में सफेद बाघों की कुल संख्या लगभग 160 आंकी जाती है, जिनमें से 19 अकेले मैत्री बाग की देन हैं। 1965 में हुई थी नींव, 1972 में बना जू
बीएसपी की स्थापना के आठ साल बाद साल 1965 में मैत्री बाग की शुरुआत एक गार्डन के रूप में की गई थी। बच्चों के लिए झूले और फिसलपट्टी जैसी सुविधाओं से शुरू हुए इस परिसर को 1972 में जू का स्वरूप दिया गया। प्रारंभिक दौर में यहां केवल भालू और बंदर रखे गए थे।
1976-78 के बीच शेर और बाघ भी लाए गए। आज यह जू 5 श्रेणियों के करीब 400 वन्य प्राणियों का घर है, जिनमें सांभर, नीलगाय, हायना, लेपर्ड, लोमड़ी, लकड़बग्घा, घड़ियाल और अन्य प्रजातियां प्रमुख हैं। लगभग 140 एकड़ में फैला परिसर बोटिंग, टॉय ट्रेन, म्यूजिकल फाउंटेन और गार्डन जैसी कई मनोरंजन सुविधाओं से लैस है।
हर साल आते हैं 12 लाख पर्यटक, पर खर्च अधिक
मैत्री बाग में हर साल लगभग 12 लाख पर्यटक पहुंचते हैं। छुट्टियों और त्योहारों के दिनों में यहां भारी भीड़ देखने को मिलती है। इसके बावजूद यहां होने वाला खर्च आय से कई गुना अधिक है। जू के संचालन में कुल 50 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें नियमित और ठेका कर्मचारी शामिल हैं।
बीएसपी प्रबंधन हर साल करीब 4 करोड़ रुपए खर्च करता है, जबकि 20 रुपए प्रति टिकट के हिसाब से कुल आय सिर्फ 1.5 करोड़ रुपए होती है।