छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक कॉन्स्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया

Chhattisgarh Crimesछत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक कॉन्स्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अपनी पत्नी के साथ ही बेटी को छोड़ दिया और भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि फैमिली कोर्ट का आदेश पूरी तरह वैधानिक है। उसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

कॉन्स्टेबल पिता को फैमिली कोर्ट ने उसकी बेटी को भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिका में पुलिसकर्मी पिता ने कहा कि, वह HIV संक्रमित है। जिसके इलाज में भारी खर्च आता है। वहीं, बेटी मेरी नहीं है, इसलिए उस पर भत्ते की राशि देना एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ होगा।

लेकिन, याचिककर्ता यह साबित नहीं कर सका कि बच्ची उसकी बेटी नहीं है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि, कॉन्स्टेबल अपनी पिता की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता और उसे अपनी बेटी को भरण-पोषण देना होगा।

जानिए क्या है पूरा मामला

दरअसल, बलरामपुर जिला निवासी याचिकाकर्ता वर्तमान में कोन्डागांव जिला पुलिस बल में कॉन्स्टेबल के पद पर कार्यरत है। अंबिकापुर निवासी उसकी पत्नी ने फैमिली कोर्ट में धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी।

इस याचिका में उन्होंने 30,000 प्रतिमाह के भरण-पोषण की मांग की थी। पत्नी ने पति पर मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने, छोड़ देने और 6 साल की बेटी की देखरेख से मुंह मोड़ने जैसे आरोप लगाए थे।

फैमिली कोर्ट ने बेटी को भरण-पोषण देने दिया था आदेश

9 जून 2025 को फैमिली कोर्ट ने अपने फैसले में पत्नी की भरण-पोषण की मांग को अस्वीकार कर दिया था। साथ ही 6 वर्षीय बेटी के पक्ष में 5,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग बच्ची की परवरिश और शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता जरूरी है।

कॉन्स्टेबल ने फैमिली कोर्ट के आदेश को दी चुनौती

कॉन्स्टेबल ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने तर्क रखा कि, बच्ची उनकी बेटी नहीं है। याचिकाकर्ता HIV संक्रमित है, उसके इलाज में भारी खर्च आता है। जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए भरण-पोषण की राशि देना उनके लिए व्यावहारिक नहीं है।

हाईकोर्ट बोला- बेटी का भरण-पोषण पिता की जिम्मेदारी

चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के तर्कों को सुनने के बाद कहा कि, फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों के साक्ष्यों और बयानों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाया है। पिता ये साबित नहीं कर सका है कि बेटी उसकी नहीं है। फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई कानूनी त्रुटि या तथ्यात्मक गलती नहीं है। याचिकाकर्ता के आरोप प्रमाणित नहीं हुए हैं।

अदालत ने कहा कि बेटी को भरण-पोषण देना पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है। इस आधार पर हाईकोर्ट ने कॉन्स्टेबल की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है।