बस्तर में नक्सलवाद की वर्तमान परिस्थितियों के बीच रिलीज हुई फिल्म ‘माटी’ दर्शकों का दिल जीत रही है। बस्तर के ग्रामीणों का दर्द, मोहब्बत और नक्सल हिंसा की कहानी वाली इस फिल्म में खुद सरेंडर नक्सलियों ने काम किया है।
बस्तर में जल-जंगल-जमीन की लड़ाई, नक्सलवाद का उदय, IED से ग्रामीणों और जवानों को नुकसान, बच्चों को बरगलाकर संगठन में ले जाना, मुखबिरी के शक में हत्या, बाहरी नक्सली और बस्तर के नक्सलियों में फर्क, महेंद्र कर्मा और सलवा जुडूम, झीरम हमला, काला झंडा से लेकर तिरंगा तक की कहानी है।
कलाकार और डायरेक्टर सभी स्थानीय
ये नक्सलवाद पर बनी पहली ऐसी फिल्म है जिसमें बस्तर के ही स्थानीय कलाकार, स्थानीय डायरेक्टर, राइटर और प्रोड्यूसर हैं। खास बात है कि सालों तक जंगल में घूमकर हिंसा फैलाने वाले नक्सली सरेंडर करने के बाद अब इस फिल्म में बड़े पर्दे पर दिख रहे हैं। एक्टिंग कर रहे हैं।
ये बस्तर में बनी पहली ऐसी फिल्म है, जो पिछले 20 दिनों से बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। इस फिल्म की खासियत है कि सालों तक नक्सल संगठन में रहकर काम किए नक्सली ही इस फिल्म में काम किए हैं। बस्तर के जल-जंगल-जमीन, नक्सलवाद की हिंसा और मुख्यधारा में लौटने से लेकर बस्तर की वर्तमान परिस्थितियों को फिल्म में दर्शाया गया है।
चंद्रिका फिल्म प्रोडक्शन ने बनाई मूवी
चंद्रिका फिल्म प्रोडक्शन ने इस मूवी को बनाया है। हिंदी और छत्तीसगढ़ी मिक्स मूवी लोगों को खूब भा रही है। संपत झा ने फिल्म की कहानी लिखी है जबकि अविनाश प्रसाद ने फिल्म को डायरेक्ट किया है। लोगों को फिल्म की कहानी के साथ फिल्म का डायरेक्शन भी बेहद पसंद आ रहा है।
इस मूवी की खास बातें
- बस्तर और नक्सलवाद की पृष्ठभूमि को गहराई से दिखाया गया है।
- फिल्म में सरेंडर नक्सली और पुलिस के जवानों ने साथ मिलकर काम किया है।
- बस्तर के बीहड़ों में ही फिल्म की शूटिंग की गई है। बड़े पर्दे पर बस्तर की असल खूबसूरती दिखाई गई है। खूबसूरत जल-जंगल-जमीन देख सकते हैं।
- सारे कलाकार बस्तर के ही हैं। नक्सलवाद पर बनी ये देश की पहली ऐसी फिल्म है जिसे बस्तर के फिल्म प्रोडक्शन ने बनाया है।
- मूवी में महेंद्र कर्मा, सलवा जुडूम, झीरम कांड से जुड़े दृश्य भी हैं। ट्रेड में चर्चा है कि मूवी का बजट करीब 1 करोड़ रुपए था।
- बस्तर के ग्रामीणों का दर्द और उनके सामने मौजूद चुनौतियां मूवी में बखूबी दिखाई गई है।
- बस्तर की वास्तविक परिस्थतियों को प्रेम कहानी के साथ इस तरह पिरोया गया है कि दर्शक मनोरंजक तरीके से पूरी मूवी को देख सकते हैं।
8-8 लाख रुपए के इनामी नक्सलियों ने किया काम
फिल्म के डायरेक्टर अविनाश प्रसाद का कहना है कि सरेंडर नक्सलियों को भी फिल्म में काम दिया गया है। अर्जुन, जूदेव जैसे कई ऐसे सरेंडर नक्सली हैं जिन्होंने मुख्य भूमिका निभाई है। सबसे नक्सल प्रभावित इलाके के आत्मसमर्पित कैडरों ने फिल्म में सीधे कलाकार की भूमिका निभाई है। वे झिझकते हुए आए, लेकिन बाद में शूटिंग के कई हिस्सों को खुद डायरेक्ट करने लगे।
एंबुश, मूवमेंट, जंगल की रणनीतियां, जो वे असल जीवन में करते थे उन्होंने कैमरे पर उसे सटीक रूप में उतारा। 8 लाख रुपए तक के इनामी नक्सली इसमें शामिल हुए। यह फिल्म असलियत के सबसे करीब इसलिए पहुंची क्योंकि उसकी रीढ़ खुद आत्मसमर्पित नक्सली थे। अविनाश ने कहा कि फिल्म रिलीज के बाद दर्शकों का खूब प्यार मिला।