कांग्रेस में जिला अध्यक्षों को मिलने वाले पावर के बाद उनकी नियुक्ति को लेकर अब नया फॉर्मूला लागू हो गया है। गुजरात से इसकी शुरुआत हो चुकी है, जहां ऑब्जर्वर के इंटरव्यू के बाद जिला अध्यक्ष तय किए जाएंगे। पहले ये काम प्रदेश नेताओं की सिफारिश से होता था, लेकिन अब प्रक्रिया पूरी तरह बदल दी गई है।
गुजरात कांग्रेस ने इसे संगठन सृजन अभियान के तहत शुरू किया है। एआईसीसी ने हर जिले के लिए ऑब्जर्वर नियुक्त किए हैं, जो स्थानीय नेताओं से चर्चा करके दावेदारों के इंटरव्यू कर रहे हैं। इंटरव्यू रिपोर्ट हाईकमान को भेजी जा रही है, जिसके आधार पर अंतिम चयन होगा।
इसके बाद छत्तीसगढ़ समेत दूसरे राज्यों में भी ये फॉर्मूला लागू किया जा सकता है।
गुजरात से बदलाव की शुरुआत
गुजरात में कांग्रेस संगठन सृजन अभियान के तहत इस नए फॉर्मूले को लागू किया गया है। AICC ने हर जिले में ऑब्जर्वर भेजे हैं जो जमीनी स्तर पर बैठकें कर रहे हैं।
पार्टी ने छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मंत्री शिव डहरिया को गुजरात में ऑब्जर्वर नियुक्त किया है। इसके अलावा अन्य राज्यों से भी वरिष्ठ नेताओं को ऑब्जर्वर बनाकर गुजरात भेजा गया है।
कैसे होगी नियुक्ति? जानिए पूरी प्रक्रिया
कांग्रेस ने नई प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से लागू किया है, जो पूरी तरह पारदर्शी और संगठित बताई जा रही है। पढ़िए पूरा फॉर्मूला:
- जिलेवार ऑब्जर्वर की नियुक्ति – AICC हर जिले में एक ऑब्जर्वर भेजेगा।
- स्थानीय नेताओं से चर्चा – ऑब्जर्वर उस जिले के विधायकों, पूर्व पदाधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात करेगा।
- दावेदारों की सूची – चर्चा के आधार पर जिला अध्यक्ष पद के दावेदारों की एक लिस्ट तैयार की जाएगी।
- इंटरव्यू प्रक्रिया – संभावित नामों का ऑब्जर्वर इंटरव्यू लेगा, जिसमें संगठनात्मक अनुभव, लोकप्रियता, और कार्यक्षमता जैसे बिंदुओं पर बात होगी।
- रिपोर्ट तैयार करना – इंटरव्यू के बाद ऑब्जर्वर अपनी रिपोर्ट तैयार कर उसे प्रदेश प्रभारी और AICC को सौंपेगा।
- अंतिम चयन – हाईकमान सभी रिपोर्टों की समीक्षा कर जिला अध्यक्ष का नाम फाइनल करेगा।
कांग्रेस ने हाल ही में गुजरात अधिवेशन में यह भी तय किया था कि जिला अध्यक्षों को संगठन में ज्यादा ताकत दी जाएगी। उन्हें टिकट वितरण की प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। अब नियुक्ति का फॉर्मूला भी बदलने के बाद पार्टी के अंदर भी इस बदलाव को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
पूर्व पीसीसी चीफ धनेंद्र साहू ने कहा कि पार्टी में संगठन क्षमता के आधार पर नियुक्ति होनी चाहिए, तेरा मेरा के आधार पर नहीं।
जिला अध्यक्षों को मिलेगा पावर
कांग्रेस इस समय संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश कर रही है। लगातार मिली हार के बाद पार्टी नेतृत्व अब जिला अध्यक्षों को और अधिक अधिकार देने और उनकी जिम्मेदारियों को स्पष्ट करने की दिशा में काम कर रहा है।
- टिकट बंटवारे में भी अब इनकी चलेगी –अब जब चुनाव आएंगे, तो कौन उम्मीदवार होगा, इसमें जिला अध्यक्ष की राय मानी जाएगी। मतलब अब फैसले सिर्फ ऊपर से नहीं होंगे, नीचे वालों की बात भी सुनी जाएगी।
- राजनीतिक पोस्ट में भी भूमिका- अब जिला अध्यक्षों को राजनीतिक अपॉइंटमेंट यानी किसे कौन सी जिम्मेदारी मिलेगी, उसमें भी रोल मिलेगा।
- आर्थिक फैसलों में भी भागीदारी –संगठन के कामों में जो खर्च-फरमान निकलते थे, वो सब अब जिला अध्यक्षों की राय से होंगे। मतलब पैसे की प्लानिंग में भी इनकी एंट्री पक्की।
- पार्टी के कार्यक्रमों की कमान- AICC और PCC से जो भी अभियान या कार्यक्रम आते हैं, उन पर अमल कराने और मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी भी अब इन्हीं की होगी।
- मतदाता सूची का काम भी इनके जिम्मे- हर जिले में वोटर लिस्ट अपडेट करवाना और सही आंकड़े रखना, ये भी अब जिला अध्यक्ष की ड्यूटी बन जाएगी।
- काम अच्छा तो मिलेगा बड़ा पद- राहुल गांधी ने खुद कह दिया है- जो जिला अध्यक्ष बढ़िया काम करेगा, उसे आगे चलकर मंत्री जैसे बड़े पद भी मिल सकते हैं। मतलब अब मेहनत करने वालों को ही मौका मिलेगा।
कांग्रेस जिला अध्यक्षों की परफॉर्मेंस इस आधार पर आंकेगी
कांग्रेस पार्टी ने अब जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ-साथ उनके कामकाज का सिस्टमेटिक आकलन शुरू करने की तैयारी कर ली है। गुजरात अधिवेशन में लिए गए फैसलों के बाद अब यह फॉर्मूला पूरे देश में लागू होगा।
पार्टी ने साफ किया है कि जिला अध्यक्ष अब सिर्फ औपचारिक चेहरा नहीं रहेंगे, बल्कि उनके प्रदर्शन की मॉनिटरिंग होगी और उसी के आधार पर भविष्य तय होगा।
इस तरह परफॉर्मेंस का होगा आकलन
- वोटर लिस्ट अपडेट – इसमें भागीदारी जिला अध्यक्ष यह सुनिश्चित करेंगे कि जिले की मतदाता सूची में समय पर सुधार हो, नए मतदाता जुड़ें और पुराने अपडेट हों। पार्टी इसे जमीनी पकड़ का पहला संकेत मानती है।
- AICC और PCC से जो कार्यक्रम भेजे जाते हैं, उनमें भागीदारी-प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व की तरफ से जो भी कार्यक्रम, आंदोलन या बैठकें तय होती हैं, उसमें जिला अध्यक्ष की सक्रिय भागीदारी अनिवार्य होगी। कौन-कितना एक्टिव है, इसकी रिपोर्ट AICC को दी जाएगी।
- कार्यक्रमों का आयोजन और प्रभाव- सिर्फ उपस्थिति नहीं, बल्कि यह भी देखा जाएगा कि कौन-कौन से आयोजन जिला स्तर पर किए गए, उनकी जनभागीदारी कितनी थी, और मीडिया और लोकल यूनिट में उसका कितना असर रहा।
- वोटिंग परसेंटेज में बदलाव- हर चुनाव में पिछले बार की तुलना में जिले में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा या घटा, यह अब सीधे जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी मानी जाएगी। यानी आंकड़ों से तै होगा कि संगठन ने जनता से कितनी बातचीत की।
- संगठन विस्तार और बूथ मैनेजमेंट- जिला अध्यक्षों से यह भी उम्मीद की जाएगी कि वह जिले में ब्लॉक और बूथ लेवल तक संगठन खड़ा करें। बूथों पर समितियों की सक्रियता, नियमित मीटिंग और कार्यकर्ता सक्रियता की रिपोर्ट भी ली जाएगी।
- पार्टी की नीतियों का प्रचार और लोकल फीडबैक- जिला अध्यक्षों को निर्देश दिया जाएगा कि वह पार्टी के मुद्दों को स्थानीय स्तर पर प्रसारित करें और साथ ही जमीनी फीडबैक भी AICC-PCC तक पहुंचाएं। इससे शीर्ष नेतृत्व को फील्ड की सच्चाई पता चलती रहे।