रतलाम। कोरोना आपदाकाल को कमाई का जरिया बनाकर नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचने वाले गिरोह का पुलिस ने भंडाफोड़ किया है. गिरोह में शामिल लोग 25 रुपए के पाउडर को भरकर रेमडेसिविर इंजेक्शन बताकर हजारों रुपए में बेच रहे थे. इस मामले में पुलिस ने जीवांश हॉस्पिटल के दो डॉक्टर और मंदसौर के युवक के साथ मेडिकल कॉलेज की एक नर्स, उसका भाई, जिला अस्पताल में पर्ची काटने वाला युवक व उसके साथी कुल 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. आरोपी मेडिकल व्यवसाय से जुड़े एवं रिश्तेदार हैं. पुलिस जांच कर रही है कि नकली इंजेक्शन किन-किन लोगों को लगे हैं. पुलिस यह भी पता लगा रही कि नकली इंजेक्शन के कारण किसी मरीज की मौत तो नहीं हुई है.
कालाबाजारी करने वाले असली समझकर दो से चार गुना कमीशन लेकर बेच रहे थे
जानकारी के अनुसार 25 रुपए का पाउडर भरकर मेडिकल कॉलेज की नर्स और उसका भाई नकली रेमडेसीविर इंजेक्शन बना रहे थे. कालाबाजारी करने वाले असली समझकर दो से चार गुना कमीशन लेकर बेच रहे थे. नकली इंजेक्शन की लागत 25 रुपए थी जो जीवांश हास्पिटल के कथित डाक्टरों तक 20 हजार रुपए में पहुंची और डाक्टरों ने उसे 30 हजार रुपए में बेच दिया. मरीजों को लगने वाला इंजेक्शन मार्केट में 25 में मिलने वाला सेफ्ट्रिक्सॉन इंजेक्शन था जिसे डॉक्टर रेमडेसिविर समझकर लगा रहे थे.
इंजेक्शन की खाली शीशी, बॉक्स (खाली खोखा) भाई पंकज को उपलब्ध करवाती थी
एसपी गौरव तिवारी ने बताया कि मरीज को लगने वाला इंजेक्शन रेमडेसिविर इंजेक्शन पावडर है, जिसमें डिस्टिल वाटर मिलाकर इंजेक्शन लगाया जाता है. मेडिकल कॉलेज में मरीज के लिए जारी इंजेक्शन के खोखे में मरीज का नाम पेन से लिखा रहता है. रीना प्रजापत मेडिकल कॉलेज में लगने वाले इंजेक्शन की खाली शीशी, बॉक्स (खाली खोखा) भाई पंकज को उपलब्ध करवाती थी. मार्केट में 25 रुपए में मिलने वाला सेफ्ट्रिक्सॉन इंजेक्शन (मान्सेफ नमक) भरकर पंकज नकली इंजेक्शन बनाता था. इंजेक्शन की एल्युमीनियम सील खोलकर निकालता और क्विकफिक्स लगाकर रेमडेसिविर की शीशी पैक कर देता था. बॉक्स में पेन से लिखा मरीज का नाम सैनिटाइजर से मिटाता और डॉक्टर टेप चिपकाकर मेडिकल लेंग्वेज में कुछ लिख देता था. यह इंजेक्शन 6 से 8 हजार रुपए में रोहित को देता. रोहित गोपाल को 12 से 14 हजार रुपए में बेच देता. गोपाल उसे प्रणव जोशी को देता और प्रणव इस इंजेक्शन को यशपाल को 20 हजार रुपए में बेच देता था.यशपाल और उत्सव इसे 30 से 35 हजार रुपए में मरीज के परिजन बेच देते थे.