कंपनी इंजेक्शन बनाती है या मौत का सामान
सीजीएमएससी ने हिपेरिन सोडियम इंजेक्शन आईपी (ड्रग कोड-डी 255) तथा हिपेरिन सोडियम 1000 आईयू एमएल आईपी इंजेक्शन (ड्रग कोड-डी 254) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। पहले बैच नंबर डीपी 2143 तथा डीपी 4111 घटिया निकला था। अब डीपी 3069, डीपी 4272 तथा डीपी 3017 खराब निकला है। सीजीएमएससी मुख्यालय के पत्र के बाद रायपुर स्थित वेयर हाउस के ड्रग स्टोर के स्टोर ऑफिसर ने यह कदम उठाया है।
हार्ट के मरीजों का खून पतला नहीं हो रहा था
डिवाइन लेबोरेटरी वड़ोदरा में बने हिपेरिन इंजेक्शन बैच नंबर डीपी 4111 तथा बैच नंबर डीपी 2143 के इंजेक्शन लगाने के बाद भी मरीजों पर कोई असर नहीं हो रहा था। थक्का न जमे इसलिए खून पतला करने के लिए ये इंजेक्शन लगा रहे थे। डॉक्टर मेडिकल स्टोर से इंजेक्शन लगाकर ऑपरेशन कर रहे थे।
दो लैब व कंपनी से रेट कांट्रेक्ट खत्म, सस्पेंशन की अनुशंसा भी
दवा कॉर्पोरेशन ने इंजेक्शन को ओके रिपोर्ट देने वाली हरियाणा की दोनों लैब इडमा लेबोरेटरीज लिमिटेड पंचकूला व सेटिएट रिसर्च एंड अंटेक प्राइवेट लिमिटेड बरवाला पंचकूला से रेट कांट्रेक्ट खत्म कर दिया है। वहीं सीजीएमएससी के तत्कालीन डिप्टी मैनेजर क्वालिटी कंट्रोल लक्ष्मण खेलवार को सस्पेंड करने की अनुशंसा की गई थी।
एंजियोप्लास्टी के दौरान कैथेटर में बन रहा था क्लॉट
कार्डियोलॉजी विभाग के एचओडी ने अस्पताल अधीक्षक को हिपेरिन इंजेक्शन के संबंध में लिखा था कि एंजियोप्लास्टी के दौरान कैथेटर में खून का क्लाट बन रहा है। खून के थक्के जल्दी बन रहे हैं, जो कि मरीजों की जान के लिए खतरा है। इंजेक्शन की क्वालिटी घटिया है। एंजियोप्लास्टी हो या, ओपन हार्ट व वेस्कुलर सर्जरी, मरीजों का खून पतला करना जरूरी है।