अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगता दिवस विशेष :  इतिहास और छत्तीसगढ़ में 7 लाख से अधिक दिव्यांगजनों का हाल

आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगता दिवस है. हर साल 3 दिसंबर को यह दिवस मनाया जाता है. दिव्यांगता दिवस की शुरुआत 3 दिसंबर 1992 से हुई थी. यह दिन दिव्यांगों को पूरी तरह से समर्पित रहता है. सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर दिव्यांगों के अधिकारों और कल्याणों पर आधारित कार्यक्रम होते हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने साल 1981 को दिव्यागजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया था. साल 1983-92 के दशक को दिव्यागजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय दशक’ घोषित किया गया था. इस साल अंतर्राष्ट्रीय दिवस (IDPD) 2024 का थीम ” समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए दिव्यांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना.”

इस दिन को मनाने के लिए, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, उत्कृष्ट दिव्यांगजनों और दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले संगठनों को राष्ट्रीय पुरस्कार देता है. इस दिवस का महत्व बहुत है क्योंकि यह एक मंच प्रदान करता है, दिव्यांगों को समझने, उनके हुनर को जानने, कला को पहचाने, अधिकारों को समझाने, योजनाओं को बताने और एक बेहतर समाज निर्माण करने में.

छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों का हाल
छत्तीसगढ़ राज्य रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर चुका है. 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना का 25वां वर्ष मनाया गया. बीते 24 वर्ष में राज्य ने तमाम क्षेत्रों में विकास किया है. राज्य की प्रगति देश और दुनिया में तेजी से विकसित होते राज्यों में है. लेकिन इसी विकसित होते छत्तीसगढ़ में एक समाज, एक वर्ग ऐसा भी है, जो विकास में अभी भी बहुत पीछे है. यह समाज दिव्यांगों का.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 21 तरह के दिव्यांग दर्ज हैं, जिनकी संख्या 7 लाख से अधिक है. 7 लाख से अधिक दिव्यांगों में अस्थि बाधित, दृष्टि, श्रवण और मुख बाधितों की संख्या अधिक है. मानव समाज में दिव्यांगों का समाज आज भी उपेक्षित, पीड़ित और शोषित है. उन्हें शिक्षित समाज में आज भी जीवन जीने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.

केंद्र और राज्य सरकार की ओर से दर्जनों योजनाएं दिव्यांगों के लिए संचालित है. योजनाओं की जानकारी समाज कल्याण विभाग की वेबसाइट्स पर विस्तार से मौजूद है. लेकिन सच्चाई यह है कि 7 लाख से अधिक दिव्यांगों में लगभग 2 प्रतिशत दिव्यांगों तक ही योजनाओं का लाभ पहुँच पा रहा है. बढ़ती महंगाई के बाद भी दिव्यांगों को सिर्फ 5 सौ रुपये ही मासिक पेंशन दिया जा रहा है. इसके साथ ही उन्हें शैक्षेणिक, आर्थिक, आरक्षण, नौकरी, स्वरोजगार जैसी सुविधा के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है.

शिक्षा को लेकर प्राप्त जानकारी के मुताबिक राज्य में 33 जिले हैं. लेकिन 21 जिलों में अभी दिव्यांगों के लिए स्पेशल स्कूल है. कई जिलों पाँचवीं, कई जिलों में आठवीं और कुछ जिलों में 12वीं तक स्कूल हैं. इन स्कूलों में पर्याप्त सीटें नहीं है. यही नहीं दिव्यांगों के लिए पूरे प्रदेश सिर्फ एक ही विशेष कॉलेज है. समस्या यहीं खत्म नहीं होती. स्कूलों में शिक्षकों की संख्या भी सिर्फ गिनती में हैं. कहीं-कहीं तो 5 सौ अधिक बच्चों के लिए सिर्फ एक ही टीचर है.

विशेष बच्चों को लेकर सबसे अधिक समस्या होती है. लेकिन मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को लेकर राज्य में किसी तरह की कोई विशेष व्यवस्था नहीं है. उन्हें एक सुगम वातावरण मुहैय्या कराया जाना बहुत जरूरी है इसके लिए भी विशेष व्यवस्था . करवाई जा रही है

मेरा सुझाव है कि सरकार को विशेष बच्चों के लिए, दिव्यांगों के लिए एक बड़ी टीम बनाकर काम करना चाहिए. सरकारी योजनाएं सभी अच्छी हैं, लेकिन सतत् निगरानी जरूरी है. जरूरी यह भी है कि दिव्यागों के साथ अलग-अलग वर्ग और समूहों में बात करनी चाहिए. क्योंकि एक चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट होने के नाते मैं विशेष बच्चों और दिव्यांगों की मनोदशा को बेहतर समझती हूँ. मैं जब भी दिव्यांगों को अपनी मांगों को लेकर सड़क पर संघर्ष करते देखती हूँ अत्यंत पीड़ा होती है. उम्मीद है विकसित होते छत्तीसगढ़ में दिव्यांगों का हाल बदलेगा. सिस्टम पर उठते सवाल बदलेगा. दिव्यांगों को लेकर समाज का ख्याल बदलेगा.

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