छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में महादेवबुक सट्टा ऐप के लिए आसानी से मोबाइल नंबर और बैंक खातों की उपलब्धता के चलते यह गोरखधंधा तेजी से फैला है। इसके लिए दूसरों के नाम से खरीदे गए मोबाइल नंबरों का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। बैंक खाते भी किराए से ले रहे हैं और दूसरों के दस्तावेजों के जरिए भी खाते खोल रहे हैं। इनमें करोड़ों रुपए का ट्रांजेक्शन कर रहे हैं।अधिकांश बैंकों में ऑनलाइन बैंक खाता खोलने की सुविधा है। इसका फायदा भी सटोरिए उठा रहे हैं। आईपीएल के इस सीजन में 183 मोबाइल फोन, 94 एटीएम कार्ड, 15 सिम कार्ड, 32 बैंक पासबुक बरामद हुए। इसी तरह 1500 से अधिक बैंक खातों में सट्टे के पैसे गए हैं। इन बैंक खाताधारकों का पता लगाया जा रहा है। पिछले पांच सालों में करीब 5 हजार बैंक खातों और 10 हजार से ज्यादा मोबाइल नंबरों का पता चल चुका है।
ऑनलाइन क्रिकेट सट्टा चलाते तीन गिरफ्तार
उल्लेखनीय है कि महादेवबुक ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर, रवि उप्पल, शुभम सोनी, अतुल अग्रवाल आदि ने सुनियोजित ढंग से सट्टे का यह गौरखधंधा शुरू किया है। 10-20 हजार देकर युवाओं से मोबाइल नंबर लेते हैं, उनके नाम पर बैंक खाता खुलवाते हैं। फिर उसी खातों का इस्तेमाल सट्टे की रकम के लिए करते हैं। इसके अलावा उसके गुर्गे दूसरों के दस्तावेजों का इस्तेमाल भी मोबाइल सिम लेने में कर रहे हैं। उसी से बैंक खाते भी खुलवा रहे हैं।
हर महीने कमीशन वाले खाते टारगेट में
महादेवबुक का पैनल खरीदने वाले को पहले 20 से 25 लाख रुपए जमा करने पड़ते हैं। इसके बाद हर महीने कमीशन भी देना पड़ता है। हर महीने कमीशन जिन बैंक खातों के जरिए जाता है, उन बैंक खातों को फ्रीज किया जाएगा। इन बैंक खातों की जानकारी निकाली जा रही है। बताया जाता है कि हर पैनल संचालक के पास यह जानकारी होती है। हालांकि पुलिस का छापा पड़ते ही महादेवबुक के गुर्गे उस पैनल को तत्काल बंद कर देते हैं।
दूसरों के नाम के मोबाइल नंबरों का भी हो रहा इस्तेमाल
183 मोबाइल फोन, 94 एटीएम कार्ड, 15 सिम कार्ड, 32 बैंक पासबुक बरामद
बैंक अकाउंट और मोबाइल नम्बर की आसान उपलब्धता से फैला गोरखधंधा
महादेव ऐप का पैनल चलाने वाले अब रायपुर के जगह दूसरे राज्यों में अपना कारोबार चला रहे हैं। स्थानीय लड़कों को दूसरे राज्य में किराए के मकान-फ्लैट दिलाकर सट्टा चलावा रहे हैं। इसके लिए ऐसे स्थान का चयन करते हैं, जहां पुलिस भी आसानी से न पहुंच पाए। किसी को शक भी न हो। पुलिस को भी आने-जाने में दिक्कत होती है। पैनल चलाने के लिए उन्हें केवल मोबाइल नेटवर्क की जरूरत रहती है।