आदिवासी इलाकों में आय का मुख्य स्रोत के साथ ही दैनिक दिनचर्या में रोजी रोटी का आधार स्तंभ भी महुआ को माना जाता है।
पूरन मेश्राम।
मैनपुर। इन दोनों आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जंगल के अंदर रहने वाले आदिवासी मूल निवासी महुआ बीनने भोर मे ही पूरे परिवार के साथ पेंज बासी लेकर जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं। गांव बस्ती सुनसान नजर आने लगा है।
जंगलों में ही झोपडी़ लारी बनाकर लोग उधर ही महुआ को बीनकर सुखाते हुए दिन रात निगरानी में लगे रहते हैं।
जंगलों में डेरा नहीं बनाने वाले अधिकाँश परिवार दोपहर तक महुआ को घरों तक पहुंँचाते है।
जंगलों में जंगली जानवरों का भी डर आदिवासियों को लगा रहता है। उसके बावजूद भी जान जोखिम में डालकर जीवकोपार्जन का मुख्य स्रोत मानी जाने वाली महुआ के लिए दिन-रात एक समान मेहनत करते हुए आदिवासी मूलनिवासी परिवार डटे रहते हैं।
तब कहीं महीनो का गुजारा निहित होता है। दुकानों एवं व्यापारियों तक अभी नया महुआ का आवन कम होने के साथ ही सुदूर वनांचल के गांवो सहित क्षेत्र के मुख्य व्यापारियों के द्वारा फिलहाल नया महुआ को 25 से 35 रुपए के आसपास खरीदी कर रहे हैं।
उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के विभागीय टीम द्वारा ग्रामीणों को बेवजह जंगलों में आग ना लगाते हुए साफ सफाई के लिए महुआ पेड़ों के समीप ही आग लगाते हैं तो पूरी सुरक्षा एवं आग के बुझने तक के जिम्मेदारी लेते हुए जंगलों को आग के हवाले ना करें ऐसा संदेश महुआ बीनने वाले ग्रामीणों को दिया गया है। सच बात है पूरे विभागीय टीम दिन रात जंगलों में फैले हुए आग को बुझाने में अपना समय देते हैं जल जंगल जमीन हमारी है।
हम सबको इनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।