राजस्थान की हेल्थ पॉलिसी का छत्तीसगढ़ में विरोध

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। राजस्थान सरकार के राइट टू हेल्थ बिल 2023 का छत्तीसगढ़ में भी विरोध हो रहा है। प्रदेश के डॉक्टरों ने इस बिल को गैरकानूनी बताया है। राजधानी में सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर के पदाधिकारियों और सदस्यों समेत तमाम डॉक्टर्स ने ब्लैक डे मनाकर इस बिल का विरोध किया और मामले में कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। बिल के विरोध में IMA ने राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बिल वापस लेने के लिए पत्र भी लिखा है।

IMA रायपुर के अध्यक्ष डॉ राकेश गुप्ता ने कहा कि राजस्थान सरकार के राइट टू हेल्थ बिल 2023 की वजह से चिकित्सक में असुरक्षा है। वैसे भी स्मार्ट कार्ड और अन्य सरकारी योजनाओं की वजह से प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों का अतिरिक्त दबाव है। और ऐसे में जल्दबाजी में लाए गए इस बिल की वजह से डॉक्टरों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

डॉ राकेश गुप्ता ने बताया कि राजस्थान सरकार द्वारा लाए गए इस बिल में इमरजेंसी की स्थिति को सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस बिल को लेकर देशभर के डॉक्टरों में नाराजगी है और इसलिए IMA के तीन लाख से ज्यादा सदस्य और देशभर के 10 लाख से ज्यादा डॉक्टर्स ने आज ब्लैक डे मना कर बिल का विरोध कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में इस बिल का कोई औचित्य नहीं-डॉ राकेश गुप्ता

राजस्थान में यह बिल लागू होने से छत्तीसगढ़ में भी इसे लाया जा सकता है। इसलिए यहां के डॉक्टर्स भी चिंतित हैं। क्योंकि राजस्थान सरकार ने डॉक्टर्स से विचार-विमर्श किए बगैर यह बिल लाया इसलिए छत्तीसगढ़ में भी अगर ऐसा कोई बिल आता है तो टकराव की स्थिति बन सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार पहले से ही स्वास्थ्य को लेकर कई निशुल्क योजनाएं चला रही है। ऐसे में राज्य में इस तरह की पॉलिसी लाने का कोई औचित्य नहीं है सुविधाओं का दायरा यहां बढ़ाया जा सकता है आर्थिक मसलों में भी बात हो सकती है।

आखिर बिल का क्यों हो रहा है विरोध

  • राइट टू हेल्थ बिल में कहा गया है कि इमरजेंसी के दौरान अगर मरीज के पास पैसा नहीं है तो निजी अस्पताल इलाज से इनकार नहीं कर सकता या पैसे के लिए बाध्य नहीं कर सकता। हालांकि इसमें इमरजेंसी की स्थिति को सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है।
  • राइट टू हेल्थ में निजी अस्पतालों को सरकार की योजनाओं के अनुसार बताई गई बीमारियों का फ्री में इलाज करना होगा।
  • मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर करने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था भी निजी अस्पतालों को करनी होगी। इसके अलावा भी कई ऐसे प्रावधान हैं जिनको लेकर डॉक्टर आपत्ति जता रहे हैं।

छत्तीसगढ़ से IMA ने भी लिखा CM अशोक गहलोत को पत्र

राजस्थान की राइट टू हेल्थ पॉलिसी का छत्तीसगढ़ IMA भी विरोध कर रहा है और इसलिए यहां से भी एक पत्र राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजा गया है। पत्र में लिखा गया है कि पूरे भारतवर्ष का चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्यरत समुदाय राजस्थान में पास हुए राइट टू हेल्थ बिल 2023 को लेकर चिंतित है और बिना विचार-विमर्श जल्दबाजी में लाए गए इस गैरकानूनी बिल का प्रतिरोध करता है ।

इस बिल में सभी मरीजों के लिए प्राइवेट अस्पताल में आपातकालीन सेवाएं सुनिश्चित करने का निश्चय व्यक्त किया गया है लेकिन इस बिल में आपातकालीन स्थिति को चिकित्सकीय दृष्टि से परिभाषित नहीं किया गया है, निवेदन है कि इस बिल को सरकारी अस्पतालों और संस्थानों के लिए प्रारंभिक तौर पर लागू किया जाए ।

कानूनी दृष्टि से ना केवल यह बिल निजी क्षेत्र के लिए आक्रामक बताया जा रहा है, बल्कि इसके आने से पहले ही बोझ तले दबी 70% से अधिक निजी स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा जाने की आशंका है। निजी अस्पतालों में सभी तरह की इलाज की सुविधाएं नहीं होती हैं। डॉक्टरों की उपलब्धता के आधार पर 80% से ज्यादा अस्पताल आपने विशेषज्ञता की सेवाएं देते हैं। राजस्थान में पहले से ही चिरंजीवी योजना के अंतर्गत 25 लाख तक का इलाज निशुल्क दिया जा रहा है।

सभी प्रकार के मरीजों के लिए आपात चिकित्सा सेवा केवल कॉर्पोरेट और मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों और बड़े शहरों में ही उपलब्ध है। ऐसे में करीब-करीब हर आपात सेवा के मरीज को सभी अस्पतालों में सेवाएं देना संभव नहीं है। राइट टू हेल्थ बिल के उद्देश्यों पर प्रश्नचिन्ह भी खड़े हो रहे हैं, क्योंकि राजस्थान सरकार अपनी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जिम्मेदारी से पीछे हट रही है। IMA द्वारा और भी कई बातों को अपने इस पत्र में शामिल किया गया है।

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