प्राचार्य पदोन्नति फोरम के साथ ही प्रमोशन को लेकर हाईकोर्ट में अलग अलग याचिकाएं दायर की गई है। इसमें बताया गया है कि पूर्व में कोर्ट के आदेश के बावजूद कई शिक्षकों को प्राचार्य पद पर प्रमोशन देकर ज्वाइन करा दिया गया है। इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि यह न्यायालय की अवमानना का मामला है और आगामी आदेश तक की गई सभी ज्वाइनिंग को अमान्य कर दिया।
प्रमोशन के लिए बीएड अनिवार्य
इस मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में 11 जून से लगातार चल रही थी। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने अपनी बहस पूरी करते हुए बीएड डिग्री को प्राचार्य पद के लिए अनिवार्य बताया। इसके अलावा, उन्होंने माध्यमिक स्कूलों के प्रधान पाठकों से व्याख्याता बने शिक्षकों की वरिष्ठता का मुद्दा भी उठाया।
शासन ने कहा नियमों के अनुसार दी पदोन्नति
हाईकोर्ट में चल रही याचिकाओं में एक मामला वर्ष 2019 से जुड़ा हुआ है, जबकि अन्य याचिकाएं 2025 में बीएड और डीएलएड योग्यता से संबंधित हैं। इस दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि प्रमोशन नियम को लेकर सभी कैटेगरी के शिक्षकों के हितों का ध्यान रखा गया है। इसमें कोई गड़बड़ी नहीं की गई है।
हाईकोर्ट का आर्डर रिजर्व
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह जानना चाहा कि याचिकाकर्ताओं ने शासन के मापदंडों को चुनौती दी है या समर्थन करते हुए याचिका दायर की है। अधिवक्ताओं ने जवाब दिया कि याचिकाएं शासन द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुरूप ही पदोन्नति की मांग को लेकर दायर की गई हैं। इसमें पक्ष और विपक्ष में भी याचिका दायर की गई है। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।