प्रदेश में मातृ मृत्युदर में अच्छी खासी कमी आई है। पहले जहां एक लाख में 159 महिलाओं की मौत होती थी, अब 132 महिलाओं की जान जा रही है। हालांकि चिंताजनक बात ये है कि प्रदेश का देश में पांचवां स्थान है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार संस्थागत प्रसव में बढ़ोतरी मातृ मृत्युदर में कमी आने की बड़ी वजह है। अब 90 फीसदी से ज्यादा महिलाओं की डिलीवरी सरकारी व निजी अस्पतालों में हो रही है।2016 से 2018 तक मातृ मृत्युदर (एमएमआर) 159 थी, जो अब कम हो गई है। मेटरनल मोर्टिलिटी पर जारी आंकड़ों को देखें तो यह प्रदेश के लिए राहत की बात है, लेकिन मध्यप्रदेश समेत प्रदेश के लिए चिंता की बात है।
प्रदेश में गर्भवती की जांच व इलाज के लिए 102 महतारी एक्सप्रेस चल रही है। यह एक तरह का एंबुलेंस ही है। अस्पताल ले जाने व घर तक छोड़ने का एक रुपए खर्च नहीं आता। यह सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। डिलीवरी के बाद भी महिलाएं इस एंबुलेंस की सेवा ले सकती हैं। प्रदेश में 324 से ज्यादा महतारी एक्सप्रेस का संचालन किया जा रहा है।
एमएमआऱ में कमी लाने के लिए प्रदेश के जिला अस्पतालों को सुदृढ़ करना होगा। प्रदेश में 33 जिले हैं, लेकिन 30 जिलों में ही जिला अस्पताल है। बाकी तीन जिलों में सीएचसी का संचालन किया जा रहा है। दुर्ग, बिलासपुर व कुछ जिलों को छोड़कर ज्यादातर रेफरल सेंटर बने हुए हैं। यानी थोड़ा सा भी क्रिटिकल केस होने पर महिलाओं को डिलीवरी के लिए आंबेडकर अस्पताल रेफर किया जाता है। कई बार रास्ते में महिलाओं की मौत हो जाती है या अस्पताल पहुंचते तक केस काफी गंभीर हो जाता है। प्रदेश का पूरा दबाव आंबेडकर अस्पताल पर है। यहां रोजाना औसत 20 से 25 महिलाओं की डिलीवरी होती है, जाे प्रदेश में सबसे ज्यादा है।
राज्य दर
मध्यप्रदेश 175
असम 167
उत्तरप्रदेश 151
ओडिशा 135
राजस्थान 102
बिहार 100
गुजरात 53
महाराष्ट्र 38
प्रदेश में मातृ मृत्युदर में कमी लाने में संस्थागत प्रसव की बड़ी भूमिका है। डिलीवरी सामान्य हो या सिजेरियन, मितानिनों के माध्यम से गर्भवती को सरकारी अस्पताल लाया जा रहा है। सरकारी अस्पताल में डिलीवरी होने पर महिला व मितानिन को एक निश्चित राशि भी दी जा रही है, जो प्रोत्साहन का काम कर रही है।