मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट की सशर्त मंजूरी, कहा- पुरातत्व संरक्षण समिति की सहमति जरूरी

 

Chhattisgarh Crimes

नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में नए संसद भवन का रास्ता साफ हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को सुप्रीम कोर्ट से भी हरी झंडी मिल गई है. कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है. हालांकि कोर्ट ने कहा है कि इसके निर्माण के दौरान प्रदुषण के काबू में करने के लिए स्मॉग टावर लगाए जाएं. इतना ही नहीं निर्माण से पहले हेरीटेज कमिटी की भी मंजूरी लेनी होगी.

कोर्ट में क्यों पहुंचा मामला?

केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को कई याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी. इन याचिकाओं में कहा गया था कि बिना उचित कानून पारित किए इस परियोजना को शुरू किया गया. इसके लिए पर्यावरण मंजूरी लेने की प्रक्रिया में भी कमियां हैं. हजारों करोड़ रुपये की यह योजना सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी है. संसद और उसके आसपास की ऐतिहासिक इमारतों को इस परियोजना से नुकसान पहुंचने की आशंका है.

7 दिसंबर को कोर्ट ने इस बात पर संज्ञान लिया कि उसका फैसला लंबित होने के बावजूद सरकार परियोजना का काम बढ़ा रही है. तब कोर्ट की नाराजगी के बाद केंद्र ने आश्वस्त किया कि फैसला आने से पहले न तो सेंट्रल विस्टा में कोई निर्माण होगा, न ही किसी पुरानी इमारत को गिराया जाएगा. इसके बाद कोर्ट ने 10 दिसंबर को होने वाले नए संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम को मंजूरी दे दी थी. शिलान्यास के बाद से नए भवन का निर्माण रुका हुआ है.

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजक्ट?

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद परिसर का निर्माण किया जाना है. इसमें 876 सीट वाली लोकसभा, 400 सीट वाली राज्यसभा और 1224 सीट वाला सेंट्रल हॉल बनाया जाएगा. इससे संसद की संयुक्त बैठक के दौरान सदस्यों को अलग से कुर्सी लगा कर बैठाने की ज़रूरत खत्म हो जाएगी. सेंट्रल विस्टा में एक दूसरे से जुड़ी 10 इमारतों में 51 मंत्रालय बनाए जाएंगे.

अभी यह मंत्रालय एक-दूसरे से दूर 47 इमारतों से चल रहे हैं. मंत्रालयों को नजदीकी मेट्रो स्टेशन से जोड़ने के लिए भूमिगत मार्ग भी बनाया जाएगा. राष्ट्रपति भवन के नज़दीक प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के लिए नया निवास भी बनाया जाएगा. अभी दोनों के निवास स्थान राष्ट्रपति भवन से दूर हैं.

 

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