क्या सर्दियों में और खतरनाक हो जाएगा कोरोना वायरस? जानें क्या है हकीकत

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस पर गर्मियों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सारी उम्मीदें धूमिल हो गईं और अब तो बारिश का मौसम भी खत्म होने वाला है। ऐसे में सवाल उठता है कि सार्सक-कोव-2 सर्दियों में क्या रंगत दिखाएगा? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तो स्पष्ट कर चुका है कि कड़कड़ाती ठंड से कोरोना वायरस के मरने की संभावना बिल्कुल नहीं है, लेकिन इस पर तापमान के असर को लेकर विशेषज्ञों की राय अब भी सामने आ रही है।

ज्यादातर मौसमी विषाणु (Seasonal Virus) सर्दियों के मौसम में सक्रिय हो जाते हैं। मसलन, दुनिया के कई हिस्सों में सर्दियों में इन्फ्लुएंजा का प्रकोप बढ़ जाता है। वहीं, भारत और समान जलवायु वाले दूसरे क्षेत्रों में मॉनसून के जाने के साथ ही सर्दियों की आहट हो गई है। हालांकि, अब तक कोविड-19 के ट्रेंड में कुछ खास बदलाव नहीं दिख रहा है।

वायरस के कारण होने वाली खासकर श्वसन तंत्र से संबंधित बीमारियां ठंडे तापमान में बढ़ती हैं। यह ट्रेंड पूरी दुनिया का है। यही वजह है कि फ्लू वायरस के कारण सबसे ज्यादा मौतें सर्दियों में ही होती हैं। ऐसे में एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे हैं कि सर्दियों में कोरोना वायरस और विकराल रूप ले सकता है। हालांकि, अब तक तापमान से उसके फलने-फूलने का कोई संबंध सामने नहीं आया है।

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि छह ऋतुओं के देश भारत में जून से सितंबर के महीने में इन्फ्लुएंजा का प्रकोप बढ़ता है, न कि सर्दियों में। ऐसे में आने वाले महीनों में कोविड-19 का प्रकोप बढ़ने की आशंका बहुत कम दिखती है। उधर, पश्चिमी देशों में कड़ाके के ठंड के कारण लोग घरों में ही दुबके रहते हैं। ऐसे में एक ही जगह पर रहने वाले लोगों के बीच वायरस के फैलने का खतरा बढ़ता है।

विषाणु विज्ञानियों के मुताबिक, भारत के परिप्रेक्ष्य में ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि भारत में सर्दियों में भी अक्सर घर से बाहर निकलते हैं और यहां के घरों में हवा की आवाजाही की भी बेहतर व्यवस्था है। 2009 से ही H1N1 स्वाइन फ्लू वायरस को झेल रहे महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मॉनसून और सर्दियों में हल्की वृद्धि देखी जाती है। लेकिन वहां भी मॉनसून के मुकाबले सर्दियों में आधी वृद्धि ही होती है।

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