नई दिल्ली। कोविड-19 के मामले बढ़ने के साथ ही वैक्सीन की जरूरत बढ़ती चली गई है। अलग-अलग देशों में 300 से ज्यादा वैक्सीन का डेवलपमेंट हो रहा है। इनमें से अधिकतर वैक्सीन इंजेक्शन की शक्ल में दी जाने वाली हैं। हालांकि कुछ वैक्सीन ऐसी भी डेवलप की जा रही हैं जिन्हें नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कराया जा सकता है। इन्हें नेजल या इंट्रानेजल वैक्सीन कहती है। कोरोना अक्सर नाक के जरिए एंट्री करता है। साइंटिस्ट्स का तर्क है कि जिन टिश्यूज से पैथोजेन का सामना होगा, उन्हीं टिश्यूज में इम्युन रेस्पांस ट्रिगर करना असरदार हो सकता है। दूसरा तर्क जो नेजल स्प्रे के पक्ष में दिया जाता है कि एक बड़ी आबादी को इंजेक्शन लगवाने से डर लगता है। साथ ही इस तरह की वैक्सीन को बड़े पैमाने पर प्रोड्यूस करना आसान होता है। आइए जानते हैं इंट्रानेजल वैक्सीन के बारे में सबकुछ।
ऐसी वैक्सीन पर क्या कहती हैं स्टडीज
चूहों के एक ग्रुप को इंजेक्शन के जरिए वैक्सीन दी गई। फिर SARS-CoV-2 से एक्सपोज कराने के बाद, फेफड़ो में कोई वायरस नहीं मिला लेकिन वायरल आरएनए का कुछ हिस्सा जरूर पाया गया। इसके मुकाबले, जिन चूहों को नाक के जरिए वैक्सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों में इतना वायरल आरएनए नहीं था जिसे मापा जा सके। स्टडीज यह भी बतलाती हैं कि नेजल वैक्सीन आईजीसी और म्यूकोसल आईजीए डिफेंडर्स को भी बढ़ावा देती हैं जो कि वैक्सीन के असरदार होने में मददगार हैं।
आम वैक्सीन से कितनी अलग हैं इंट्रानेजल वैक्सीन
आमतौर पर इंट्रामस्कुलर (इंजेक्शन वाली) वैक्सीन कमजोर म्यूकोसल रेस्पांस ट्रिगर करती हैं क्योंकि उन्हें बाकी अंगों की इम्युन सेल्स को इन्फेक्शन की जगह पर लाना होता है। आम वैक्सीन के मुकाबले इन्हें बड़े पैमाने पर बनाना और डिस्ट्रीब्यूट करना आसान है। इसमें उसी प्रॉडक्शन तकनीक का यूज होना है तो इन्फ्लुएंजा वैक्सीन में इस्तेमाल होती है।
कैसे काम करती है यह वैक्सीन
नेजल वैक्सीन आपके इम्युन सिस्टम को खून में और नाक में प्रोटीन्स बनाने के लिए मजबूर करती है जो वायरस से लड़ते हैं। डॉक्टर आपकी नाक में एक छाटी सीरिंज (बिना सुईं वाली) से वैक्सीन का स्प्रे करेगा। यह वैक्सीन करीब दो हफ्ते में काम करना शुरू कर दी जाती है। नाक के जरिए दी जाने वाली दवा तेजी से नेजल म्यूकोसा (नम टिश्यू) में सोख ली जाती है, फिर उसे धमनियों या रक्त शिराओं के जरिए पूरी शरीर में पहुंचाया जाता है।
कितनी असरदार हो सकता है ये तरीका
नेजल और ओरल वैक्सीन डेवलप करने वाली टेक्नोलॉजी कम हैं। यह भी साफ नहीं है कि कोविड-19 से मुकाबले के लिए कितनी वैक्सीन की जरूरत होगी। नेजल स्प्रे के जरिए दवा की बेहद कम मात्रा शरीर में जाती है। फ्लू के लिए बनी नेजल वैक्सीन बच्चों पर तो असरदार है लेकिन एडल्ट्स में कमजोर पड़ जाती है।