जगज्जननी की अभ्यर्थना का महापर्व

Chhattisgarh Crimes
अनिल पुरोहित

Chhattisgarh Crimes

‘माँ’! अनादि काल से सृष्टि का प्रत्येक घटक ‘माँ’ शब्द का उच्चारण कर अपनी सुरक्षा की याचना करता आ रहा है! समस्त कष्टों-आपदाओं से हमारी सुरक्षा करती आई है माँ! और इसीलिए इस सनातन सत्य का उद् घोष हमारी मातृ-पद वंदना में पूर्ण श्रद्धा के साथ व्यक्त होता है-

हे! परम मंगल रूपिणी
हे! सौम्य शांत स्वरूपिणी
हे! धम्म शक्तिदायिनी!

मन जब अशांत-अस्थिर-विचलित हो उठता है, धवल आशाओं के टिमटिमाते दीये जब निराशा की कालिमा से संघर्ष करते हैं, तब अंतरात्मा याचक बन आर्त-पुकार करती है-

माँ! ले चलो, मुझे ले चलो
उस शांत धरणी पर मुझे
माँ ले चलो!

माँ से कुछ छिपा नहीं रहता! वह तो मुख पर तैरती भाव-भंगिमाओं को ताड़ जाती है। वह याचक का निवेदन भला कैसे ठुकरा दे, आर्तमन पुकारता है-

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

माँ देवी है! मातृ देवो भव:! हम अनादि काल से यही अर्चना करते आ रहे हैं-

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमस्तस्यै: नमो नम:!
और वही माँ हमें अपनी कृपा-सरिता के पुण्य-प्रवाह का स्पर्श कराती हुई ले चलती है! कहां…? वहीं- उस शांत धरणी पर…
जहां पूर्ण परमानंद है,
जहां मधुर शिव आनंद है
जहां दीखता नहीं द्वंद्व है!

यही पूर्ण परमानंद-मधुर आनंद है, सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा! ‘माँ’ आसुरी वृत्तियों का दमन करने वाली शक्ति-पुंज है। सृष्टि में पुत्र और माँ का संबंध सूत्र इस्पात की तरह मजबूत और कुसुम की भांति कोमल होता है! माँ कभी गलत नहीं हो सकती। आसुरी वृत्तियों का शिकार सृष्टि में हम पुत्र होते हैं, पर माँ तब भी हमें सम्हालती है! इसीलिए तो हम आराधना की बेला में कहते हैं-

कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति।
भारतीय संस्कृति में ही माँ को जगज्जननी का परम पद दिया गया है- वही सत्-चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्म रूपा है- रमा, उमा, महामाया, राम-कृष्ण-सीता-राधा, पराधामनिवासिनी, श्मशानविहारिणी, तांडवलासिनी, सुर-मुनिमोहिनी सौम्या, कमला, विमले, वेदत्रयी- सर्वस्व वही है! ज्ञान प्रदायिनी, वैराग्यदायिनी, भक्ति और विवेक की दात्री ‘माँ’ की अभ्यर्थना का महापर्व ‘शारदीय नवरात्रि’ का मंगलगान गूंज उठे…

माँ! उतेरो शक्ति रूप में
माँ! उतेरो भक्ति रूप में
माँ! उतेरो ज्ञान रूप में
अब लो शरण ज्ञानेश्वरी!

हम क्या हैं? कहां से आए हैं? कहां जाना है? क्या लक्ष्य है हमारा? सारे विवादों से परे हटकर, आसुरी वृत्तियों का दमन कर हम अर्चना के पद गुनगुनाएं…
हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे
और प्रार्थना करें-

निज स्वभाववश जननि दयादृष्टि कीजै
करुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै!

करुणेश्वरी की आराधना के महापर्व ‘शारदीय-नवरात्रि’ की पावन बेला पर जगज्जननी के पावन पाद-पद्मों में कोटिश: नमन, इस विनम्र प्रार्थना के साथ- आसुरी वृत्तियों का दमन करो मां! इस राष्ट्र को परम-वैभव के शिखर तक पहुंचा सकें, ऐसी शक्ति दो मां! सर्वत्र सुख-शांति-वैभव का साम्राज्य फैला दो माँ!

सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खमाप्नुयात्!