भ्रष्टाचार को दबाने का नया तरीका, कनिष्ठ से कराई उच्चाधिकारी की जांच, दोषी पाए जाने पर अब बोले दोबारा होगी जांच

Chhattisgarh Crimes

नरेंद्र ध्रुव/ छत्तीसगढ़ क्राइम्स

गरियाबंद( छूरा )।  जिले में भ्रष्टाचार करने और उसे दबाने के अबतक एक से एक पैंतरे सामने आ चुके है। शिक्षा विभाग ने अब भ्रष्टाचार करने और फिर उसे दबाने का एक नया पैंतरा खेला है। विभाग ने भ्रष्टाचार के मामले में पहले तो छोटे अधिकारियों की जांच कमेटी बनाकर बड़े अधिकारी की जांच करवा दी, जब जांच में बड़े अधिकारी दोषी पाए गए तो अब विभाग के जिम्मेदार अधिकारी पुरानी जांच को गलत बताते हुए नये सिरे से जांच कराने की बात कह रहे है।

इस पूरे मामले में सबसे अहम बात ये है कि पहली जांच सालभर पहले पूरी हो चुकी है जिसे सार्वजनिक होने से दबाकर रखा गया। अब जांच रिपोर्ट सामने आई तो जिम्मेदार जांच टीम पर ही सवाल खड़े कर नये सिरे से जांच की बात कहकर मामले को लंबा खींचने में लगे है। मामला शिक्षा विभाग की “खेलगढिया योजना” से जुड़ा है। मैनपुर विकासखंड के अधिकांश प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शालाओं में इस योजना की राशि का दुरुपयोग करते हुए टीवी खरीदी की गई थी। सालभर पहले यह मामला मीडिया में सामने आया था, इसके बाद तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा चार सदस्यीय टीम गठित कर जांच के निर्देश दिए गए।

चार सदस्यीय जांच टीम में सहायक परियोजना अधिकारी गरियाबंद एलएल देवांगन, विकासखंड शिक्षा अधिकारी गरियाबंद आरपी दास, प्राचार्य शाउकमावि गरियाबंद आरपी मिश्रा,विकासखंड स्रोत केंद्र समन्वयक गरियाबंद शिवकुमार नागे शामिल थे। टीम ने 19 संकुल समन्वयक, 35 माध्यमिक शाला प्रधान पाठक, 41 प्राथमिक शाला प्रधानपाठक एवं मैनपुर बीआरसीसी का शपथपूर्ण ब्यान दर्ज किया। जांच टीम ने 06 जुलाई 2020 को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट जिला शिक्षा अधिकारी को सौंपते हुए जिला मिशन समन्वयक (डीएमसी) श्याम चंद्राकर को दोषी ठहराया है। टीम ने तर्क देते हुए अपनी जांच में स्पष्ट किया है कि डीएमसी श्याम चंद्राकर ने 27 फरवरी 2020 को हुई एक बैठक में संकुल समन्वयकों एवं प्रधान पाठकों को खेलगढिया योजना की राशि से टीवी खरीदने के मौखिक आदेश दिए थे। जिसका पालन करते हुए ज्यादातर संकुल समन्वयकों एवं प्रधान पाठकों ने खेल सामग्री की खरीदी के बजाय टीवी की खरीदी की थी।

मामले में सबसे अहम बात ये है कि जांच टीम द्वारा 06 जुलाई 2020 को पेश की गई रिपॉर्ट को विभाग ने अबतक सार्वजनिक नही किया। अब मीडिया के हाथ ये रिपोर्ट लगी है। अधिकारी अब जांच टीम को ही अपात्र बताते हुए नये सिरे से जांच का दावा कर रहे है। जिले के नवपदस्थ जिला शिक्षा अधिकारी करमन खटकर ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि अब इस मामले की दोबारा जांच की जा रही है। क्योंकि इससे पहले जो 4 सदस्यीय टीम ने जांच की थी उन्हें डीएमसी की जांच करने की पात्रता नही है। उनका कहना है कि उक्त जांच टीम में जो 4 अधिकारी नियुक्त किये गए थे उनका पद प्रिंसिपल लेवल के डीएमसी से छोटा है इस लिहाज से उन्हें जांच करने की पात्रता नही है। हालाकिं उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि छोटे अधिकारियों को जांच का जिम्मा क्या जानबूझकर दिया गया था या फिर मामले को किसी तरह लंबा खींचकर रफा दफा करने के मकसद से किया गया था। सवाल ये भी खड़ा होता है कि पहले ही जांच टीम में किसी जिला स्तरीय अधिकारी को नियुक्त क्यों नही किया गया। क्योकि मामला बड़ा था ऐसे में किसी जिला स्तरीय अधिकारी का जांच टीम में होना कोई गलत नही होता। कारण जो भी हो फिलहाल ये मामला एक बार फिर शिक्षा विभाग के गले की फांस बन गया है। अब देखना ये होगा कि विभाग इस फांस को कितनी जल्दी निकालने की कोशिश करता है।