नरेंद्र ध्रुव/ छत्तीसगढ़ क्राइम्स
गरियाबंद। बैसाख (चिंदोमान) मास की शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन आखातीज मनाने का रिवाज पारंपरिक व सांस्कृतिक भाषा मे आदिवासी समाज आदि से अनंत काल से करते आ रहे है। जब उस समय वैज्ञानिक पढ़ लिख कर नही आए थे तब यही आदिवासी प्रकृति के अनुरूप सिद्धांतो पर चलते हुए सभी का आंकलन करते हुए उस समय के वैज्ञानिक कहें तो कोई गलत नही होगा, चाहे वहा समय हो या बीज परीक्षण से लेकर बोआई, रोपाई, निदाई फसल कटाई से लेकर मिसाई तक का समय से पहले ही बता दिया करते थे कि किस समय यह कार्य करना उचित रहेगा। जिस प्रकार आज वैज्ञानिक बारिश से पहले ही इस स्थानों पर कितनी बारिश होगी व हलचल पहले से पता कर लिया जाता हैं उसी प्रकार यहाँ लोग अनुमान लगा लिया जाता था ।
इसी संदर्भ में जानकारी उपलब्ध है। आखातीज आदिवासी समाज के लिए एक बेहद खास है जिसमे पूरा समाज नए वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है यह सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही पूरे मध्य भारत से लेकर दक्षिण भारत मे भी मनाई जाती हैं। इस दिन महिलाएं व पुरूष प्रातः काल स्नान करके नए पकड़े धरण करके ग्राम के ठाकुर देव स्थान पर अपने पारंपरिक पद्धति से पूजा अर्चना करते हुए बारह महीनों के फसल को परसा के पत्ते के दोना बनाकर उसमें सभी प्रकार के बीजों को एकत्रित करते हैं उसके बाद बैगा भुमका द्वारा देवता का करते हुए उस बीच पर अभिमंत्रित करते हुए और सभी लोगों के द्वारा लाए गए दोना को ग्रामीणों को देते है ग्रामीण लोग लेने के बाद कृषक अपने बीज को कुलदेवता, ग्राम देवता आदि को समर्पित करते हुए खेतो में बुआई करने की नेंग विधि को तैयार कर लिया जाता है ।
आदि अनंत काल की निवासी प्रकृति प्रेमी जनजाति समाज अपने पारम्परिक व सांस्कृतिक भाषा मे आखातीज पर्व बडे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसी दिन से ही अपने किसी कार्य मे निपुण हो जाते हैं सभी किसी यंत्रों की व बीजो की पूजा पद्धति के साथ हल चलाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देते हैं। ग्राम के सियान एवं डाकेश्वर मंडावी , रूपेश नागवंशी द्वारा जानकारी देते हुए कहा कि पतझड़ में सब पत्ते झड़ जाते है किंतु परसा का पत्ता उसी समय नही झड़ता इसके पत्ते के दोने बनकर के हल्दी तेल सभी बीजों को रखकर देवस्थान पर ले जाते है और पूर्व विधि के अनुसार प्रकिया किया जाता हैं ।आखातीज के बाद ही जीमी कन्दा भी जमीन से तने निकला प्रारंभ हो जाता है यह प्राकृतिक संयोग है।