नई दिल्ली. हिंदू धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यह तिथि आती है। इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 17 नवंबर, बुधवार को है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। ऐसे में इस दिन प्रभु श्रीहरि की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने व भगवान विष्णु की पूजा करने वाले भक्तों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
बैकुंठ चतुर्दशी शुभ मुहूर्त-
इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 17 नवंबर बुधवार को सुबह 09 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगी, जो कि 18 नवंबर, गुरुवार को समाप्त होगी। बैकुंठ चतुर्दशी की महत्ता शास्त्रों में भी वर्णित है। मान्यता है कि इस दिन मृत्यु को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को सीधे स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मु्क्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने भगवान श्रीहरि को सुदर्शन चक्र दिया था। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और प्रभु विष्णु एकाएक रूप में रहते हैं।
बैकुंठ चतुर्दशी महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की 1 हजार कमलों से पूजा करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण का भी विशेष महत्व है। बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत रखने से भी बैकुंठ धाम की अंत में प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद, उसमें मारे गए लोगों का भगवान श्री कृष्ण ने श्राद्ध करवाया था।
बैकुंठ चतुर्दशी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प यानी फूल चढ़ाने का संकल्प किया। भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए सभी में से एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया। पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपनी ‘कमल नयन’ आंख को समर्पित करने लगे। तभी भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा प्रकट होकर कहा कि कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ‘वैकुण्ठ चौदस’ के नाम से जानी जाएगी। मान्यता है इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।