लगातार बारिश के बीच पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ मनाया गया छुरा अंचल में हरेली का त्यौहार

Chhattisgarh Crimes

किशन सिन्हा/छत्तीसगढ़ क्राइम्स

छुरा।
बीते कुछ दिनों ऋतु की फुहारें सतत्त रूप से न सिर्फ छुरा अंचल अपितु समग्र छत्तीसगढ़ में हो रहा है ऐसे में समय समय पर किए जाने वाले सामाजिक,आर्थिक और धार्मिक क्रियाकलाप भी प्रभावित होते हैं लेकिन आज का दिन लगातार हो रहे बरसात के तमाम परेशानी के बीच भी पारंपरिक व सांस्कृतिक रितिरिवाजों का उन्माद रूप बन कर सामने आया है जहां खेतीहर भूमि व किसानों का हृदय दोनों ही हरियर नज़र आ रहे हैं सावन महीने के एक पक्ष बीतने पर आए हरियाली अमावस्या को छत्तीसगढ़ के निवासी अपने पहले धार्मिक त्यौहार के रूप में हरेली मनाते हैं जो कि खेत खलिहान में फसल के बोवाई व रोपाई के बाद आता हैं, इस अवसर पर गांव में लोग सुबह से जंगल में मिलने वाले एक विशेष पेड़ जिसे लोकमान्यता के अनुसार बुरी नजर से बचाने के लिये उपयोग में लाते हैं इसी पेड़ भेलवा के डंगाल को अपने सभी खेती बाड़ी व घरों में ला कर रखतें हैं जिससे फसल व परिवार की बुरी नजर से सुरक्षा हो सके। इसके बाद गांव में यादव समुदाय के द्वारा गौठान में एकत्रित होकर साह्ड़ा देव का विशेष पूजा-अर्चना किया जाता है जिसमें गौ पालक किसान परिवार अपने अपने गौवंश हेतु खम्हार नामक पेड़ के पत्ते में आटा व नमक लपेट कर गाय बैलों को आगामी बरसात में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु खिलाते हैं जिससे पशु वर्ष भर स्वस्थ व निरोगी रहें ।

ऐसा ही व्यवस्था पशु चारक यादव समाज द्वारा वनों से लाये औषधीय कंद मूल को उपस्थित सभी ग्रामीणों को प्रसाद रूप में वितरण कर रोगमुक्त रहनें का कामना किया जाता है । तत्पश्चात लोग अपने अपने घरों में खेती बाड़ी में उपयोग होने वाले समस्त कृषि यन्त्र की सफाई कर भगवान बलदाऊ का प्रतीक मन हलदेव का पूजन कर खिर मीठा व चीला का भोग लगते हैं जिसमें छोटे बच्चों के लिये बांस बना का एक विशेष खिलवना गेंड़ी भी बनाते हैं जो बड़ा ही आकर्षक होता है।

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वहीं गांव में खेती व अन्य धार्मिक कार्य एक दुसरे के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सयहोग से पूर्ण होता है हरेली के दिन सभी सहयोगी किसान एक दुसरे के घर मिलने जाते हैं जिसे जोहारने की परम्परा का नाम दिया गया है इस परम्परा के अतंर्गत गांव के बैगा घर घर जा कर नीम व भेलवा का डंगाल मुख्य दरवाजे पर लगाता है, लोहार घर के चौखट पर किल ठोकता है, बैगा भेलवा डारा और मछवारा (केवट) अपने जाल के एक टुकड़ा घरों को बुरी नजर से बचाने के लिये अपने शुभकामनाओं के साथ बांधता है। इसके बदले में दाल, चावल, नमक, मिर्च, पैसा एक सुपा में सजा कर भेंट करने की परम्परा सदियों से ग्रामीण परिवेश में चला आ रहा है। जिसे इस वर्ष भी बरसात के बीच बड़े ही धुमधाम से मनाया गया ।