बस्तर में मिली मेंढक की एक और नई प्रजाति, पानी में नहीं… पेड़ों पर रहना है पसंद

जैव विवधता से भरपूर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में मेंढक की नई प्रजाति मिली है। कांगेर घाटी में मिली मेंढक की यह प्रजाति 27 मिमी साइज की है। इस मेंढक की पहचान चिरिक्सेलस साइमस के तौर पर की गई है। सबसे छोटे आकार के इस मेंढक की खोजकर्ता डॉ सुशील दत्ता ने बताया कि इसके मिलने के बाद से बस्तर में मेंढक की 21 प्रजातियां यहां खोजी जा चुकी हैं। पूर्व के शोध में कुल 17 मेंढक बस्तर से ज्ञात थे, जिन्हें डॉ सुशील दत्ता, विभागाध्यक्ष शास्त्र शासकीय पीजी कॉलेज ने रिपोर्ट किया है।झाड़ियों में पाया जाता है मेंढक
छोटे आकार की चिरिक्सेलस साइमस मेंढक झाड़ियों में पाया जाता है। यह पानी में प्रजनन करते हैँ और वनस्पत्तियों में अंडे देते हैं। मेंढक अंडों को लार्वा बनने तक सुरक्षित रखने के लिए नम और झागदार घोसलों में रखते हैँ। प्रजनन काल के दौरान चिकचिक की आवाज निकालकर मादा मेंढक को आकर्षित करता है। इस आवाज से ही इस प्रजाति के मेंढक की पहचान किया जा सकता है।छत्तीसगढ़ में एकमात्र रहवास
सबसे छोटे आकार के मेंढक चिरिक्सेलस साइमस पूरे प्रदेश में सिर्फ छत्तीसगढ़ के कांगेर वैली सहित बस्तर के वनों में देखा गया है। इसके अलावा यह मेंढक असम, मिजोरम, त्रिपुरा और प बंगाल सहित भूटान के कुछ हिस्से में पाया जाता है। यह पेड़ों में निवास करते हैँ। यही वजह है कि इसे आसाम पिग्मी ट्री फ्रॉग के नाम से भी जाना जाता है।बस्तर जीव जंतुओं के लिए सुरक्षित स्थान
बस्तर के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सहित माचकोट वन परिक्षेत्र में जैव विविधताओं से भरा वन समूह है। कई तरह के दुर्लभ जीव जंतुओं की मौजूदगी बस्तर के वनों की नैसर्गिक खूबसूरती ओर स्वस्थ प्रकृति को साबित करती है। डा. प्रत्युष महापात्र ने बताया कि जीव जंतुओं की प्रजातियों की खोज केवल देखकर व फोटो खींच लेने से नहीं होता बल्कि सेंपल एकत्र करने टेक्सोनोमीक अध्ययन के लिए मानिक्यूलर स्तर तक प्रयोग किए जाते हैं और प्रजातियां सिद्ध की जाती हैं।

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