पूरा मामला रविवार दोपहर करीब 2 बजे का है। गुरुर ब्लॉक के ग्राम नारागांव स्थित मां सियादेही मंदिर दर्शन और वाल्मीकि झरना देखने के लिए प्रदेशभर से सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचे थे। इनमें भिलाई क्षेत्र से भी 50 से अधिक लोग शामिल थे।
करीब 2 बजे हुई आधे घंटे की बारिश के बाद पुल पर पानी उफान मारने लगा। इसके चलते पर्यटक मंदिर और झरना क्षेत्र से निकलने की कोशिश में घबराने लगे। मंदिर समिति के सदस्यों ने उन्हें नाले को पार करने से रोका भी। लेकिन इसके बावजूद छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं सहित करीब 25 लोग हाथ पकड़कर पुल पार करने लगे। इसी दौरान सबसे आगे चल रहा युवक तेज धारा में बह गया। जिसे बचाने के प्रयास में उसका साथी भी बह गया।
झाड़ियों में फंसे, चट्टानों से भरे झरने में गिरने से बचे
नारागांव के उपसरपंच जगन्नाथ साहू ने बताया कि यह हादसा पर्यटकों की लापरवाही का नतीजा है। मंदिर परिसर में ही पानी कम होने का इंतजार करना चाहिए था। लेकिन भिलाई से आए पर्यटक जोखिम उठाते हुए पुल पार करते रहे और नाले में बह गए। गनीमत रही कि दोनों युवक झाड़ियों में फंस गए। जहां नारागांव के युवकों ने उन्हें बाहर निकाल लिया।
दोनों युवक काफी पानी पी चुके थे और बाहर निकलते ही बेहोश हो गए। ग्रामीणों का कहना था कि यदि बचाव में 1 मिनट की भी देर हो जाती तो दोनों सीधे झरने में गिर जाते। हादसे के बाद ग्रामीणों ने उन्हें अस्पताल ले जाने की सलाह दी। लेकिन घबराए युवक तुरंत भिलाई लौट गए।
वर्षों से बड़ा पुल बनाने की मांग, सुनवाई नहीं हुई
उपसरपंच जगन्नाथ साहू ने बताया कि सियादेही छत्तीसगढ़ के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। इसके बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव है। छोटा पुल होने की वजह से हर बारिश में नाले का जलस्तर बढ़ते ही खतरा बढ़ जाता है और इस तरह की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। ग्रामीण और श्रद्धालु वर्षों से बड़ा पुल बनाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
अब जानिए बालोद जिले की सियादेही मंदिर की कहानी छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में स्थित यह मंदिर घने जंगलों, पहाड़ियों और झरनों के बीच एक प्राचीन मंदिर स्थित है। जहां माता सीता सफेद वस्त्र धारण किए शांत मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि त्रेता युग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण कुछ समय के लिए यहां ठहरे थे।
कहा जाता है कि माता सीता के चरणों के निशान आज भी इस स्थान पर विद्यमान हैं। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के आधार पर स्थानीय ग्रामीण माता सीता को अपनी आराध्य देवी मानते हैं और उन्हें श्रद्धा भाव से सियादेवी या सियादेही के नाम से पुकारते हैं।