हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने प्री-प्राइमरी और नर्सरी स्कूलों की मान्यता से जुड़ी जनहित याचिका पर एक बार फिर से कड़ी नाराजगी जताई

Chhattisgarh Crimesहाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने प्री-प्राइमरी और नर्सरी स्कूलों की मान्यता से जुड़ी जनहित याचिका पर एक बार फिर से कड़ी नाराजगी जताई।

शिक्षा सचिव ने अपने शपथपत्र में ऐसे स्कूलों की मान्यता के लिए बनाए गए सर्कुलर वापस लेने पर स्पष्ट कारण नहीं बताया। जिस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए उन्हें नया शपथपत्र के साथ विस्तृत जवाब देने के निर्देश दिए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद होगी।

हाईकोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान शिक्षा सचिव के जवाब को असंतोषजनक बताते हुए कहा कि अगर सर्कुलर वापस लेने से छात्रों की पढ़ाई या भविष्य पर कोई विपरीत असर पड़ता है, तो राज्य सरकार नियमों के विपरीत स्कूल चलाने वाले जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई तय करे।

साथ ही कहा कि राज्य सरकार जल्द से जल्द नए नियम बनाकर हाईकोर्ट को सूचना दे। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि आखिर उसने जनवरी 2013 के उस सर्कुलर को क्यों वापस ले लिया, जो बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों पर कार्रवाई का आधार था। कोर्ट ने शिक्षा सचिव के शपथ पत्र में ठोस कारण नहीं होने पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई।

शिक्षा सचिव का जवाब- 2013 का सर्कुलर प्रभावी नहीं

हाईकोर्ट के पिछले आदेश के परिपालन में स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव ने व्यक्तिगत शपथ पत्र दिया था, इसमें बताया गया कि सरकार ने 23 सितंबर 2025 को वर्ष 2013 वाला सर्कुलर रद्द कर दिया है क्योंकि यह बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 यानी आरटीई एक्ट के अनुरूप नहीं था। अधिनियम केवल कक्षा 1 से 8 और 6 से 14 वर्ष के बच्चों पर लागू होता है, जबकि सर्कुलर प्री-नर्सरी बच्चों से संबंधित था।

पुराने सर्कुलर में नहीं था कार्रवाई का प्रावधान

शपथ पत्र में कहा गया कि पुराने सर्कुलर में बिना पंजीकरण या मान्यता के चल रहे स्कूलों पर कोई स्पष्ट दंडात्मक प्रावधान नहीं था। इसलिए विभाग ने इसे वापस लेकर नई नीति के तहत कार्य करने का निर्णय लिया है।

नई नीति पर काम जारी, बनी सात सदस्यीय समिति

शासन की तरफ से यह भी बताया गया कि बच्चों की सुरक्षा, गुणवत्ता और निगरानी के लिए सात सदस्यीय समिति गठित की गई है। समिति ने नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप निजी प्ले स्कूलों के लिए नियामक दिशा निर्देश का मसौदा तैयार किया है, यह फिलहाल विचाराधीन है।

हाईकोर्ट ने कहा- पढ़ाई प्रभावित हुई तो जिम्मेदार पर करें कार्रवाई

हाईकोर्ट ने जवाब को असंतोषजनक बताते हुए कहा कि अगर सर्कुलर वापस लेने से छात्रों की पढ़ाई या भविष्य पर कोई विपरीत असर पड़ता है, तो राज्य सरकार जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करे, जिन्होंने नियमों के विपरीत स्कूल चलाए हैं। साथ ही कहा कि राज्य सरकार जल्द से जल्द नए नियम बनाकर हाई कोर्ट को सूचना दे।

बगैर मान्यता के चल रहे 330 से अधिक स्कूल

दरअसल, सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी की जनहित याचिका में बताया गया है कि प्रदेश में बिना किसी मान्यता के 330 से ज्यादा स्कूल संचालित हो रहे हैं। ये स्कूल न सिर्फ बच्चों की भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं, बल्कि अभिभावकों को भी धोखा दे रहे हैं।

अगस्त में हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि वर्ष 2013 के सर्कुलर के अनुसार नर्सरी स्कूलों को मान्यता लेना अनिवार्य था, लेकिन अब अफसर कह रहे हैं कि इसकी जरूरत नहीं। पूछा था कि 12 साल तक बिना अनुमति स्कूल कैसे चल गया? गली- मोहल्ले में ऐसे स्कूल खुल गए हैं। यह बंद होना चाहिए।

330 से अधिक स्कूलों के हजारों छात्रों के सामने संकट

राज्य सरकार के वर्ष 2013 के सर्कुलर को वापस लेने से ऐसे 330 से अधिक स्कूलों से प्री नर्सरी और नर्सरी की पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों के सामने संकट खड़ा हो सकता है।

याचिकाकर्ता सीवी भगवंत राव की तरफ से एडवोकेट देवर्षि ठाकुर ने शुक्रवार (17 अक्टूबर) को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के सामने यह मुद्दा उठाया। बताया कि चूंकि ये स्कूल बगैर मान्यता के चलाए जा रहे थे, ऐसे में क्लास-1 में एडमिशन के दौरान वैध सर्टिफिकेट नहीं होने से छात्रों को परेशानी हो सकती है।

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