
दरअसल, 17 अक्टूबर को जगदलपुर में 210 नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर किया था। 153 हथियार भी सौंपे गए थे। इन्हें 3 बसों के जरिए के जगदलपुर मुख्यालय लाया गया था। सेंट्रल कमेटी मेंबर (CCM) सतीश उर्फ टी. वासुदेव राव उर्फ रूपेश माड़ डिवीजन में सक्रिय था। उस पर 1 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था।
अब पढ़िए रूपेश ने क्या कहा ?
रूपेश ने एक वीडियो जारी कर कहा कि, सरकार के साथ शांति वार्ता को लेकर अप्रैल के महीने में हमने अपना पहला प्रेस नोट जारी किया था। हमारे महासचिव बसवा राजू भी चाहते थे कि हम सशस्त्र संघर्ष को विराम दे दें। सरकार के साथ हम सीधे बातचीत करें, क्योंकि हमें आगे के हमारे भविष्य के बारे में सोचना था।
बसवा राजू ने यह भी कहा था कि केंद्रीय कमेटी की पहले एक बैठक करेंगे और उस बैठक में संघर्ष विराम पर निर्णय लेंगे। हमने सरकार से भी मांग की थी कि वे ऑपरेशन बंद करें, ताकि हम अपनी कोर बैठक कर सकें। सरकार लगातार कह रही थी कि आप लोग पहले हथियार छोड़ो। हम इसी विषय पर अपनी कोर कमेटी की बैठक में बातचीत करना चाह रहे थे।
लीडर देवजी को भी लेटर लिखा था
वहीं, इसी बीच बसवा राजू का एनकाउंटर हो गया। सेंट्रल कमेटी के लोगों को हम इकट्ठा कर रहे थे। हम लीडर देवजी को भी लेटर लिखे थे। मई 13 और 14 तक देवजी समेत 2 सेंट्रल कमेटी के मेंबर तक लेटर पहुंच गया था। बसवा राजू के एनकाउंटर के बाद देवजी से मेरी मुलाकात भी हुई। हालांकि, वे सरेंडर करने वाली प्रक्रिया से असहमत थे।
मेरी और बसवा राजू के बीच में जितने भी पत्राचार हुए थे। उन सभी लेटर को मैंने सारे सीसी मेंबर को दिया। उन्होंने लेटर को देखा। रूपेश का कहना है कि अब ऐसा कहा जा रहा है कि बसवा राजू ने पहले संघर्ष विराम को लेकर हामी भरी थी, लेकिन बाद में बदलती हुई परिस्थितियों को देखकर उन्होंने अपना मन बदल लिया था।
पार्टी को बचाने के लिए किया सरेंडर
रूपेश ने कहा कि यह बात पूरी तरह से गलत है। हमने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे हमें गलत ठहराया जाए। हमने अपनी पार्टी को बचाने के लिए, लोगों के लिए लड़ने के लिए सरेंडर के अलावा हमें कोई और दूसरा रास्ता नहीं दिख रहा था। इसलिए हम सरेंडर करने की पहल किए।
कर्रेगुट्टा ऑपरेशन और अबूझमाड़ ऑपरेशन के बारे में हमें जानकारी थी। सशस्त्र संघर्ष को विराम देने का निर्णय बसवा राजू का था, लेकिन बसवा राजू के एनकाउंटर से पहले मेरे पास भी उनका एक लेटर आया था। ये लेटर अब सभी केंद्रीय कमेटी मेंबर्स के पास भी है, जिसमें यह साफ लिखा है कि उन्होंने (बसवा राजू) ने भी सशस्त्र संघर्ष को विराम देने का निर्णय वापस नहीं लिया था।
गलत बताकर हमें कह रहे हैं गद्दार
सरेंडर नक्सली ने कहा कि, सीसी मेंबर देवजी समेत एक अन्य ने भी बसवा राजू के लेटर को देखा था। अब हमें गद्दार बोला जा रहा है। मैं इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगा। यह तो पार्टी की प्रक्रिया है। हमने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया, इसलिए सशस्त्र संघर्ष को भी जारी रखने वाले इस निर्णय को गलत बताकर हमें गद्दार कह रहे हैं।
इस बीच पार्टी को जितने भी नुकसान हुए हैं, उन नुकसानों को लेकर पार्टी हमें जिम्मेदार ठहरा रही है, यह गलत है। एक बात समझिए केवल मेरे बोलने से पार्टी कोई निर्णय नहीं लेगी। हमारी राजनीति हमारा सिद्धांत अलग है। अभी जो लोग पार्टी में मौजूद हैं उनके लिए हमारे मन में सम्मान है।
स्पेशल जोनल कमेटी ने थी बैठक
उन्होंने कहा कि, हमारे जितने साथी हथियार डाले हैं उनमें से एक भी साथी यह नहीं सोचता कि अंदर में भी जो हमारे साथी है उन्हें नुकसान हो। हम सिर्फ यही सोचते हैं कि वह लोग भी सही रास्ते में आ जाएं। हमारे हथियार छोड़ने के निर्णय को लेकर उस समय भी स्पेशल जोनल कमेटी ने एक समीक्षा बैठक की थी।
मैं सरेंडर करने की अपनी बातों को DKSZCM, DVCM, ACM, PB और PPC कैडर्स के पास गया था। हमारे लोगों का क्या विचार है, इसे मैं जानकर बैठक में रखना चाहता था। हमारे साथी सोनू दादा से हमारा कोई संपर्क नहीं था। उनसे इन विषयों को लेकर भी कोई बातचीत नहीं हुई थी। रूपेश ने अब माओवाद संगठन पर सवाल खड़े किए हैं।
साथियों से हमारे इस लेटर को भी छिपाया गया
रूपेश ने कहा कि, दंडकारण्य में इतनी बड़ी बैठक हुई थी और इस बैठक में हमें यह नहीं बताया गया था कि उत्तर बस्तर में क्या चल रहा है? वहां के साथी इस बारे में क्या सोच रहे हैं। उत्तर बस्तर के साथियों से हमारे इस लेटर को भी छिपाया गया। माओवादी पार्टी ने कभी झूठ नहीं बोला है।
जब हमारे 28 साथी मारे गए थे, तब पुलिस ने बताया था कि 27 मारे गए हैं, लेकिन हमने इसे क्लियर किया और बताया था कि 28 साथी मरे हैं। रूपेश का कहना है कि मैं अपने किसी भी साथी को दबाव डालकर सरेंडर करवाने नहीं लाया हूं। हमारे ऊपर जो आरोप लगा रहे हैं वह आरोप गलत है।