
दरअसल, 4 नवंबर को गेवरारोड में मेमू लोकल और मालगाड़ी की टक्कर की मुख्य वजह ऑटो सिग्नलिंग सिस्टम की खामियों और तकनीकी समस्याओं को माना जा रहा है। रेलवे के पांच सदस्यीय टीम की जांच में प्रशासन की लापरवाही सामने आई है। पैसेंजर ट्रेन चलाने के लिए जरूरी है साइको टेस्ट
लोको पायलट विद्यासागर पहले मालगाड़ी चलाते थे। करीब एक महीने पहले ही उन्हें प्रमोशन देकर पैसेंजर ट्रेन परिचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। रेलवे के नियमों के अनुसार किसी भी चालक को जब मालगाड़ी से पैसेंजर ट्रेन में पदोन्नत किया जाता है, तो उससे पहले उसका साइकोलॉजिकल टेस्ट होता है, जिसे पास करना अनिवार्य है।
यह परीक्षा चालक की मानसिक संतुलन, त्वरित निर्णय क्षमता और आपात स्थिति में प्रतिक्रिया का आकलन करती है। खास बात यह भी है कि रेलवे अधिकारियों को विद्यासागर के साइकोलॉजिकल टेस्ट पास नहीं करने की जानकारी थी, फिर भी उन्हें सहायक चालक के साथ ट्रेन परिचालन की अनुमति दी गई। CRS ने पूछा- राहत-बचाव के समय कहां थे ART और ARMV इंचार्ज
इस हादसे की जांच के लिए CRS की जांच शुरू हो गई है। डीआरएम कार्यालय में जांच के बाद कमिश्नर ऑफ रेल सेफ्टी बीके मिश्रा ने पहले दिन सभी जरूरी विभागों के इंचार्ज और सहयोगी कर्मचारियों से पूछताछ की।
पहले दिन एरिया बोर्ड के एससीआर से लेकर एआरटी, एआरएमवी इंचार्ज समेत कंट्रोलर पूछताछ के लिए बुलाए गए। इस दौरान CRS ने सभी इंचार्ज से एक से डेढ़ घंटे तक अलग-अलग पूछताछ की।
जांच में सबसे पहले एरिया बोर्ड के एससीआर पूजा गिरी को बुलाया गया। उनसे घटना के दौरान उनकी उपस्थिति, पैनल और सिस्टम में आने वाली दिक्कतों के बारे में पूछा। ड्राइवरों से उनके कम्युनिकेशन सिस्टम सहित अन्य जानकारी ली।