
कोर्ट के माना है कि अभियोजन हत्या से संबंधित कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर सका। घटना आरोपी ने किया है ऐसा प्रमाणित नहीं हुआ। अभियोजन युक्तियुक्त संदेह से परे अपना मामला साबित करने में असफल रहा। इसलिए अभियुक्त संजय तिवारी को संदेह का लाभ देते हुए धारा 302 भादवि के आरोप से दोषमुक्त कर दिया गया है।
संजय तिवारी 4 जून 2024 से 13 फरवरी 2025 तक जेल में रहे। जब रिहा हुए, तब तक सब कुछ बदल चुका था। पत्नी ने साथ छोड़ दिया, समाज ने ठुकरा दिया और नौकरी चली गई। कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर पुलिस विवेचना की गुणवत्ता और जल्दबाजी पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानिए कब क्या हुआ
- 3 जून 2024 को आर. बाला राजू की मौत हुई। जिसे पुलिस ने हत्या मानकर विवेचना शुरू की।
- पुलिस ने इसे हत्या मानते हुए सीमेंट फैक्ट्री में सहकर्मी संजय तिवारी को आरोपी बनाया।
- 4 जून 2024 को पुलिस ने संजय तिवारी को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।
- 31 अगस्त 2024 को चार्जशीट प्रस्तुत किया गया।
- 24 सितंबर 2024 से सुनवाई शुरू हुई। आरोप-अपराध का विवरण कोर्ट में रखा गया।
- 14 अक्टूबर 2024 को कोर्ट के समक्ष साक्ष्य प्रारंभ किए गए।
- 13 फरवरी 2025 को सुनवाई पूरी हुई और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया।
- 13 फरवरी 2025 को ही कोर्ट ने संजय तिवारी को इस मामले में दोष मुक्त कर बरी करने का निर्णय दे दिया।
- 4 जून 2024 से लेकर 13 फरवरी 2025 तक, कुल 255 दिन संजय तिवारी जेल में रहे।
सिर में चोट लगने से मौत, लेकिन हत्या स्पष्ट नहीं
घटना स्थल से एक प्लास्टिक का डब्बे में खून आलूदा मिट्टी और अन्य डिब्बे में सादी मिट्टी एवं एक फाइबर पाइप का टुकड़ा, मृतक के पहने हुए एक सफेद रंग का हेलमेट, जिसमें खून का धब्बा लगा हुआ था, उसे जब्त किया गया। लेकिन डॉक्टर ने बताया कि हेलमेट किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं था।
साथ ही यह भी बताया कि अगर व्यक्ति को सिर में चोट आएगी तो हेलमेट भी क्षतिग्रस्त होगा। लेकिन हेलमेट सही सलामत था। पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी की शर्ट पर खून के निशान हैं। हथौड़े से बाला राजू की हत्या की गई थी। लेकिन बाद में शर्ट पर किसी भी प्रकार के खून के निशान नहीं मिले।
हथौड़े पर भी रक्त के कोई अंश नहीं पाए गए। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने अभिमत में कहा कि मृतक की मृत्यु सिर में चोट और अत्यधिक रक्तस्राव के कारण हुई थी, लेकिन ऐसी चोटें ऊंचाई से गिरने पर भी आ सकती हैं। डॉक्टर ने यह भी कहा कि यदि सिर पर हथौड़े से वार हुआ होता, तो मृतक का हेलमेट क्षतिग्रस्त होता, जबकि वह सही-सलामत मिला।
कोर्ट ने माना हत्या होना नहीं कर सके साबित
कोर्ट में प्रतिपरीक्षण में विवेचक और तत्कालीन जामुल थाना प्रभारी केशव कोसले ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका 19 में यह स्वीकार किया कि एफआईआर करने से पहले और सभी व्यक्तियों द्वारा यह बताया गया था कि मृतक आर. बाल राजू की मृत्यु गिर जाने की वजह से हुई है।
इस प्रकार प्रकरण के विवेचक को मृतक आर. बालराजू की मृत्यु गिर जाने की वजह से दुर्घटना के स्वरूप की होने का साक्ष्य प्राप्त होना दर्शित है।
इस मामले में प्रति परिक्षण की कंडिका-15 में डॉक्टर ने यह स्वीकार किया है कि यदि कोई व्यक्ति उंचाई से कड़े और उबड़खाबड़ धरातल पर गिरे तो जैसी चोट मृतक को आई थी वैसी चोट आना संभावित है।
मृत्यु का कारण सिर में चोट लगने की वजह और ज्यादा खून का बहना एवं हार्ट अटैक से होना प्रतीत होता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मृतक को जो अब्रेजन की चोटें आई थी वह गिरने की वजह से आ सकती है।
कोर्ट में मृतक के साथ खुद की भी कॉल डिटेल रखा सामने
इधर संजय तिवारी ने अपने वकील के माध्यम से कोर्ट में अपने पक्ष में सारे सबूत कोर्ट को दिए। इसमें उन्होंने कोर्ट को कॉल डिटेल दिए। यह कॉल डिटेल हादसे के वक्त के दौरान की थी।
घटना के दिन मृतक रात 9.26 बजे तक फोन पर बात कर रहे थे। उसके बाद 9.30 बजे चक्कर खाकर गिर गए। प्लांट के कर्मचारियों की मदद से 9.46 बजे उन्हें अस्पताल में ले गए।
इसी दौरान संजय तिवारी का कॉल डिटेल में भी 9.27 से लेकर 9.38 तक फोन पर बात कर रहे थे। इसके बाद संजय 9.47 बजे घटना स्थल पर पहुंचे।
डिजिटल साक्ष्य से साबित हुए निर्दोष
इस मामले में कोर्ट ने सारे डिजिटल साक्ष्य, गवाहों का बयान, पीएम रिपोर्ट को आधार मानते हुए फैसला संजय तिवारी के पक्ष में दिया। इस पूरे मामले में पुलिस की जांच में कहीं भी यह साबित नहीं हो सका कि यह हत्या थी और संजय ने इस वारदात को अंजाम दिया था।
इस वजह से कोर्ट ने इस मामले में आरोपी बनाए गए संजय तिवारी को निर्दोष करार दिया। पीएम रिपोर्ट में आर. बालाराजू की मौत हार्ट अटैक से होना पाया गया।
पुलिस ने ही दर्ज की थी एफआईआर, लेकिन उसमें संजय का नाम नहीं
इस मामले में न तो एसीसी अडाणी जामुल कंपनी ने एफआईआर दर्ज करवाई थी और न ही मृतक के परिजनों ने अपराध दर्ज करवाया था। इस मामले में जामुल पुलिस ने ही हत्या का मामला दर्ज कर मुखबिर की सूचना पर संजय तिवारी को गिरफ्तार किया था।
वहीं एफआईआर में भी संजय तिवारी का नाम नहीं था। केवल शंका के आधार पर बिना कोई सूचना के गिरफ्तार किया गया था कि उनके शर्ट पर खून के दाग हैं।
दोषमुक्त होने के बाद बोले संजय – जिस आरोप में सजा काटी वो हत्या नहीं हादसा था
संजय ने बताया कि कंपनी ने मेरे साथ भेदभाव किया है। क्योंकि एक पक्ष को सुना, मेरा पक्ष सुना ही नहीं। जबकि मेरे पास पूरे साक्ष्य हैं। अदालत ने मुझे निर्दोष माना है।
क्योंकि जिस आधार पर मुझे शक के आधार पर गिरफ्तार किया गया था वह हत्या नहीं बल्कि एक हादसा था। न्यायालय ने सारे आरोप को खारिज करते हुए मुझे निर्दोष करार दिया और दोषमुक्त कर दिया।