नरेंद्र ध्रुव, छत्तीसगढ़ क्राइम्स
गरियाबंद। देश में अनेक ऐसे शिवालय और शिवलिंग हैं जो अपनी अलग विशेषताओं के कारण जाने जाते हैं. ऐसा ही एक शिवलिंग छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग होने का दावा किया जाता है. यह एकमात्र ऐसा शिवलिंग जिसकी उंचाई हर साल बढ़ती है. यह शिवलिंग वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था और विज्ञानियों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है. सावन के आखरी सोमवार के कारण आज श्रद्धालुओं की भीड़ देखने मिल रही है।
राजधानी रायपुर से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गरियाबंद जिले के एक छोटे से गांव मरौदा के जंगलों में प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव के नाम से विश्वप्रसिद्ध हैं. दुनियाभर में इसकी ख्याति हर साल बढ़ने वाली इसकी ऊंचाई के लिए फैली हुई है.
अर्धनारीश्वर इस शिवलिंग को भकुर्रा महादेव भी कहा जाता है. भूतेश्वर महादेव के स्थानीय पंडितों और मंदिर समिति के सदस्यों का कहना है कि हर महाशिवरात्रि को इसकी ऊंचाई और मोटाई मापी जाती है.
सदस्यों का कहना है कि हर साल यह शिवलिंग एक इंच से पौन इंच तक बढ़ जाती है. भकुर्रा महादेव के संबंध में कहा जाता है कि कभी यहां हाथी पर बैठकर जमींदार अभिषेक किया करते थे. भूतेश्वर महादेव के बारे में बताते हैं कि हर साल सावन मास में दूर-दराज से कांवड़िये (भक्त) भूतेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करने आते हैं.
गौरतलब है कि भूतेश्वर महादेव की ऊंचाई का उल्लेख 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थाक के पृष्ठ क्रमांक 408 पर मिलता है, जिस पर इसकी ऊंचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट लिखी है. इसके बाद 1978 में इसकी ऊंचाई 40 फीट बताई गई, जबकि 1987 में 55 फीट और 1994 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला. यह जानकर हैरानी होगी कि वर्तमान में इस शिवलिंग की ऊंचाई 80 फीट बताई जा रही है. यानी यह कह सकते हैं कि 1952 से लेकर अब तक भूतेश्वर महादेव का कद करीब 45 फीट बढ़ गया है. बताया जाता है कि शिवलिंग पर एक हल्की-सी दरार भी है, जिसे कई लोग इसे अर्धनारीश्वर का प्रतीक भी मानते हैं.
जानिए भूतेश्वर धाम की महिमा
पूरे विश्व का सबसे बड़ा एकमात्र प्राकृतिक शिवलिंग है भूतेश्वरनाथ ।गरियाबंद जिले के मरौदा गांव में घने जंगलों बीच ,यह शिवलिंग प्राकर्तिक रूप से प्रकट हुआ है। हरी-भरी प्राकृतिक वादियों के बीच जिला मुख्यालय गरियाबंद से महज 3 किलोमीटर दूर अद्भुत अकल्पनीय सा दिखता यह शिवलिंग पूरे छत्तीसगढ़ के शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बन गया है दूर-दूर से यहां भक्त जल लेकर भगवान शिव अर्पित करने पहुंचे हैं भोले बाबा भी उनकी मन मांगी मुराद जरूर पूरी करते हैं यही कारण है कि बीते 8 -10 सालों में यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना बढ़ गई है।
पौराणिक कथा
इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती- बाडी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई। ग्राम वासियों ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी। तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की। परतु दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगो की श्रद्वा बढने लगी। और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे। इस बारे में पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे- धीरे जमीन के उपर आती जा रही है। यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है। यह भी किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए।