अनोखी घटना: त्रिकूट पर्वत पर विराजित हैं मां शारदा, पुजारी देवी प्रसाद साक्षी, 1063 सीढ़ियां लांघकर भक्त करने जाते हैं माता के दर्शन
मैहर। कहते हैं मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं। ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी 1063 सीढ़ियां लांघ कर भक्त माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले की मैहर नगर के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को शारदा देवी कहा जाता है। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर मां शारदा का वास है। मां शारदा का मंदिर पर्वत की चोटी के मध्य में है। देशभर में माता शारदा का अकेला मंदिर सतना के मैहर में ही है। जहां भक्त बड़ी सिद्धत के साथ पूजा-अर्चना करते हैं।
त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा यूं तो हजारों भक्तों पर अपनी कृपा वर्षा चुकी है, लेकिन आज भी एक ऐसी दंतक कथा है, जिसको सुनने के लिए लाखों भक्त बेताब रहते है। मुख्य पुजारी देवी प्रसाद ने बताया कि 52 शक्ति पीठों में मैहर शारदा ही ऐसी देवी जहां अमरता का वरदान मिलता है। मां की कृपा कब किस भक्त पर हो जाए ये कोई नहीं जानता है। हालांकि माता की एक दर्जन दंतक कथाएं सदयुग, द्ववापर, त्रेता एवं कलयुग में सुनाई जा रही है। देवी प्रसाद ने कहा कि हमारी चौथी पीढ़ी माता की सेवा कर रही है। देवी प्रसाद ने कहा कि 55 वर्षों की पूजा के दौरान एक बार मुझे एहसास हो चुका है। एक बार मैं पूजा कर घर चला गया। सुबह मंदिर का पट खोलकर पूजा की शुरुआत की तो पहले से ही पुष्प माता के दर पर चढ़े थे। फिर भी मन नहीं माना तो माता की चुनरी को उठाया तो अंदर भी पुष्प दिखाई दिए। तब से हमें भी एहसास हुआ की मां अजर-अमर है। यह जरूर भक्तों को मन चाहा वरदान देती हैं।
1967 से कर रहे पूजा
पुजारी देवी प्रसाद ने कहा कि वर्ष 1967 में हमारे पिता ने माता की पूजा-अर्चना करने का अवसर दिया। उस समय त्रिकूट पर्वत पर वीरान जंगल था। मैंने भी कई कथाएं आल्हा-उदल और पृथ्वी राज सिंह चौहान की सुनी थी। मुझे भी लगा की माता ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया है। आज भी कई भक्त कहते हैं कि रोजाना सुबह घोड़े की लीद और दातून पड़ी रहती है। वहीं कई लोग दावा कर रहे हैं कि माता की रोजाना पहली पूजा आल्हा ही करता है, लेकिन मैं इन सब बातों का दावा नहीं कर सकता।
मंदिर से जुड़ी ये भी कहानी
माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थीं। उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। वे शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सती ने अपनी जिद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकर जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुर्इं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे।
दिन प्रतिदिन बढ़ रही आस्था
ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया। माना जाता है कि यहां मां का हार गिरा था। इसलिए भक्तों की आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।
गर्भ गृह का रहस्य आज भी बरकरार
पर्वत के शिखर पर मैहर वाली माता के साथ ही श्री काल भैरव मंदिर, हनुमान मंदिर, देवी काली मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री गौरी शंकर मंदिर, शेष नाग मंदिर, फूलमती माता मंदिर, ब्रह्म देव और जलापा देवी का मंदिर है। मंदिर के गर्व गृह में हमेशा एक दिव्य ज्योति जलती रहती है। जिसका रहस्य आज भी बरकरार है।
मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
मंदिर के पुजारी देवी प्रसाद ने बताया कि सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं-10वीं शताब्दी में पूजा-अर्चना की थी। शारदा देवी का मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म के नजरिए से खास नहीं है। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। दुनिया के जाने-माने इतिहासकार भी इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है।