अनिल पुरोहित, पत्रकार
किसी व्यक्ति के जीवन के दिव्यता और सार्थकता से परिपूर्ण होकर ऊँचाइयों पर पहुँचने, एक विचार को आत्मसात कर प्रभु श्रीराम के मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक अयोध्या आंदोलन को सार्थकता प्रदान करने और राष्ट्रीय गौरव की पुनर्स्थापना के लिए अपनी सत्ता-कामना पर तुलसी-पत्र रख देने की कोई मिसाल अगर देनी होगी तो निस्संदेह अयोध्या आंदोलन के महानायक परम आदरणीय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी के समर्पित सहयोगी नायकों की सूची का पहला नाम श्रद्धेय स्व. कल्याण सिंह ही होंगे। उत्तरप्रदेश की मिट्टी की सुगंधि से महकती श्रद्धेय स्व. कल्याण सिंह जी की पार्थिव काया अपनी महक बिखेरकर सोमवार २३ अगस्त, २०२१ को जब नरौरा के पावन गंगा तट पर पंचतत्व में विलीन हो रही थी, तब हज़ारों सजल नयनों का उनकी पुण्य-स्मृतियों को पखारना निश्चित ही उस जीवन के, व्यक्तित्व के विराट हृदय की वंदना से कम नहीं होगा। रक्षाबंधन से ठीक एक दिन पहले शनिवार २१ अगस्त, २०२१ की शाम को कल्याण सिंह जी अंतिम श्वाँस लेकर नश्वर काया के बंधन से मुक्त हुए तो यह सिर्फ़ इतना ही नहीं है कि अजर-अमर, अनश्वर आत्मा एक देह को पुराना वस्त्र समझ देहरूपी नया वस्त्र धारण कर रही है; अपितु यह आत्मा के परमात्मा में विलीन होने का, प्रभु श्री राम के चरणों में सुवास अर्जित कर समस्त कामनाओं और मोह से मुक्त जीवन को मोक्ष की प्राप्ति होने का क्षण है!
श्रद्धेय स्व. कल्याण सिंह जी के जीवन का मूल्यांकन कुछ पाने और उसे सहेजे रखने के लौकिक चरित्र के आधार पर करना संगत नहीं होगा। आत्मीय पत्रकार मित्र श्री पंकज झा के विचारों में- “विचारधारा के साथ रहकर आपने क्या पाया, इससे स्व. कल्याण जी का मूल्यांकन नहीं होगा। विचारधारा के पक्ष में स्व. कल्याण जी ने क्या-क्या ठुकराया, क्या त्याग किया, कसौटी यह होगी।” यक़ीनन ०६ दिसंबर, १९९२ की तारीख़ स्व. कल्याण जी को इस कसौटी पर भारतीय राजनीति में युगांतरकारी व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करती है, जिस दिन भगवान रामलला के काज के लिए अयोध्या में जुटे लक्ष-लक्ष कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाने के अपने संकल्प की पूर्ति कर उन्होंने सत्ता न्यौछावर कर दी थी। सुश्री दामिनी नारायण सिंह की पंक्तियों में यह भाव उनके लक्ष्यनिष्ठ व्यक्तित्व-कर्तृत्व की तिलक-रेखा इस तरह खींचता है-
“जितने अहम राम/ उनसे ज़रा भी नहीं कम/ कारसेवकों के प्राण;/ कह गया आपका कर्म-पथ!/ धर्मरक्षक कल्याण सिंह जी प्रणाम!/ वानर-सेना की जय/ परंपरा है आर्यावर्त की;/ प्रभु ख़ुद चुनते हैं वो प्राण/ जिसका साहस कह उठता है-/ त्रेता या कलियुग…/ बस, राम-राम-राम श्रीराम!”
भारतीय राजनीति के संकल्प-निष्ठ, वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रतीक राजनेता और प्रभु राम लला के अनन्य भक्त श्रद्धेय स्व. कल्याण सिंह जी की पुण्य-स्मृतियों को कोटिश: नमन!! प्रभु राम लला उनकी पुनीत आत्मा को चिरशांति व अपने चरणों में सुवास प्रदान करें और हम सबको उसी संकल्प-निष्ठा एवं वैचारिक प्रतिबद्धता का सम्बल प्रदान करें, ताकि हम ‘न त्वहं कामये राज्यं’ के उद्घोष के साथ राष्ट्र के गौरव की रक्षार्थ स्वयं को प्रतिक्षण प्रस्तुत रखें।