जेल में किसी का सिर फूटा तो कोई भूखा-प्यासा रहा, जानिए छत्‍तीसगढ़ के आंदोलनकारियों से इमरजेंसी का काला सच

Chhattisgarh Crimes

रायपुर। 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल घोषित हुआ था। इस दौरान इंदिरा गांधी की सरकार के विरुद्ध षडयंत्र रचने के आरोपों में कई लोगों को जेल भेज दिया गया। प्रदेश सरकार ने पांच साल के बाद 350 मीसाबंदियों (लोकतंत्र सेनानी) को पेंशन जारी की है। आपातकाल का दर्द उनके दिलों में आज भी ताजा है। अलग-अलग शहरों के लोकतंत्र सेनानियों ने अपनी कहानी बयां कर दर्द को साझा किया।

पानी मांगने पर पेशाब पीने को कहा जाता

26 जून को भिलाई-दुर्ग में सक्रिय जनसंघ व आरएसएस के सभी प्रमुख लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। छह महीने बाद छात्रों ने भी अपनी गिरफ्तारी दी। जेल में छात्रों को न पीने को पानी मिलता और न ही भोजन। जमकर पिटाई एवं प्रताड़ना मिली। जेल से ही हमने बीएसपी प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी। हाथ में हथकड़ी बांधकर हमें परीक्षा केंद्र तक लाया जाता था। जेल में अच्छी पढ़ाई के बावजूद सभी विषय में शून्य अंक ही मिले थे। मेरे पिता स्व. राजकिशोर सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े थे, मैं भी बालकाल्य से ही संघ से जुड़ा हूं। उस दिन सत्याग्रही जिस गली से गुजरते लोग फूल बरसाते रहे, पर पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रही थी। शाम साढ़े पांच बजे सभी को गिरफ्तार किया। रात भर प्रताड़ना दी गई। पानी मांगने पर पेशाब पीने को कहा जाता था। दो जनवरी को सबको थाने में इकट्ठा किया गया। शाम तक पूछताछ की गई। पुलिस वाले यह जानना चाहते थे कि आखिर किसके कहने पर यह लोग गिरफ्तारी देने आए हैं। शाम सात बजे सभी को रायपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

– योगेंद्र सिंह भिलाई

नारा लगाने पर किया गया था गिरफ्तार

महासमुंद खम्हरिया के मणिलाल चंद्राकर ने कहा, 18 मई, 1975 में मेरी शादी हुई। जून में आपातकाल लगा। संघ से जुड़ा होने के चलते मैं सत्याग्रही आंदोलन से भी जुड़ गया। अमृत साहू के साथ दत्ता ड्राईक्लीनर्स मालवीय रोड से हमने नारा लगाना शुरू किया। जोर है कितना दमन में तेरे, देख लिया है, देखेंगे। नारा लगाया। जिस पर हमें गुढ़ियारी पुलिस ने पकड़ा। मारपीट की। पूछताछ की। थाना में भूखे प्यासे रखा। बड़ी यातना सहनी पड़ी। पैसे तक छीन लिए और 13 दिसंबर 1975 की शाम जेल में बंद कर दिया गया। यहां यातनाएं दी गई। मारपीट की गई। 1 जनवरी, 1976 को श्यामाचरण शुक्ल मध्य प्रदेश के सीएम बने। उस दिन जेलर शर्मा व अधीक्षक आजम खान ने अन्य बंदियों से कहा कि मीसा बंदियों को मारो, सजा में 15 दिन की छूट देंगे। शाम पांच बजे लाठीचार्ज हुआ। हम जेल के भीतर सभा भवन में थे। मेरा सिर फटा, लहूलुहान हुआ। जब खून बंद न हुआ, तब रात एक बजे डीकेएस हास्पिटल में भर्ती किया गया। तीन जनवरी को पेशी में ले जाया गया। जज को बताया कि लाठीचार्ज से मारा गया है।

दो बार जेल गया, यातना भरा था वह दौर

रायपुर के समाजसेवी मोहन चोपड़ा ने कहा, 26 जून 1975 की शाम महासमुंद में समाजवादी नेता मधु लिमिये की सभा थी। इस सभा से ही लोगों को उठाकर जेल में डालना शुरू कर दिया। मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं। विद्यार्थी परिषद से जुड़कर छात्र हित की आवाज उठाता रहा। पहली बार रायपुर में मुझे 29 जून को गिरफ्तार कर सेंट्रल जेल में बंद किया गया। डीआइआर के तहत मामला दर्ज किया गया। 12 दिन बाद पैरोल पर बाहर आया। बाद में गुपचुप प्रचार जारी रहा। इस बीच सत्याग्रही आंदोलन में इंदिरा के खिलाफ नारा लगाने के आरोप में फिर गिरफ्तार किया गया। तब दूसरी बार 15 दिन जेल में बंद रहा। फिर शासन से आरोपों की पुष्टि नहीं होने पर फिर छोड़ा गया। एक जनवरी को जेल में लाठीचार्ज हुआ। साथी मणिलाल चंद्राकर व अन्य घायल हुए, इन्हें देखने गुपचुप रूप से अस्पताल गया। यहीं से तीन जनवरी को फिर पकड़ा गया। फिर इंदिरा सरकार गिरने पर आपातकाल समाप्ति के बाद बाहर निकला। आपातकाल का दौर बहुत यातना भरा था। जेल के भीतर हमें और बाहर घर वालों को परेशान किया जाता था।

स्‍कूल में पढ़ाते समय किया था गिरफ्तार

मीसाबंदी गोवर्धन गुलहरे ने बताया, वह दौर वाकई भयानक था। संघ के पदाधिकारियों की सूची पुलिस ने बना ली थी। इस सूची के अनुसार लगातार गिरफ्तारी हो रही थी। जिनका नाम सूची में था, वे हर हाल में जेल में डाले जा रहे थे। मैं छत्तीसगढ़ स्कूल में भौतिकी का व्याख्याता था। मैंने गोंड़पारा में मकान बनवाया था। पूजा हो गई थी, गृह प्रवेश नहीं हो पाया था। आपातकाल लगते ही संघ से जुड़े बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर रहे थे। इसी बीच कानपुर जाना हुआ। एक सितंबर 1975 को वापस शहर आया। गिरफ्तार करने वालों की सूची में मेरा नाम भी था। इसके बाद चार सितंबर को मैं सीधे स्कूल पहुंचा। सिटी कोतवाली थाना प्रभारी का स्कूल के प्राचार्य बाटवे जी के पास फोन आया। मेरे बारे में जानकारी मांगी। ज्वाइनिंग के दौरान ही मैंने प्राचार्य को पूरी जानकारी दे दी थी और यह भी बता दिया था कि गिरफ्तारी के लिए मानसिक रूप से तैयार होकर आया हूं। लिहाजा कुछ ही देर में पुलिस की टीम स्कूल पहुंच गई। गिरफ्तार करने की जानकारी दी, मैं उनके साथ थाने चले गया। रातभर थाना परिसर में बैठे थे।

Exit mobile version