हाईकोर्ट के आदेश से सेवा सहकारी समितियों को मिली बड़ी राहत
गरियाबंद। जिले में धान खरीदी करने वाले सेवा सहकारी समितियो को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने माना है कि धान की सुखद और कमी के लिए सेवा सहकारी समिति दोषी नहीं है। समय पर धान का उठाव होता तो यह स्थिति नहीं बनती। हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन द्वारा शार्टेज वसुली के लिए समिति को जारी आदेश को भी स्थगित कर दिया है।
ज्ञात हो कि जिले मे गत वर्ष हुए धान खरीदी के बाद उस पर सुखत एवं कमी पाए जाने पर शासन की ओर से कलेक्टर एवं खाद्य शाखा ने खरीदी केंद्रों पर शार्टेज धान की राशी के वसुली करने और राशि जमा ना करने पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने आदेश जारी किए थे। जिससे जिले के सभी समितियों में हड़कम्प मच गया था।
कलेक्टर ने सेवा सहकारी समिति रानीपरतेवा, दुल्ला, रसेला, चरोदा, कौंदकेरा, पाटसीवनी, छुरा, खड़मा, सीवनी, आमदी के विरूध्द शार्टेज धान की पैसे वसुली एवं पैसे जमा न करने पर थाने मे एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए थे। जिसके बाद उपरोक्त समितियों की ओर से रायपुर के युवा अधिवक्ता अंजिनेश अंजय शुक्ला की ओर से हाईकोर्ट में पिटिशन दायर किया गया था।
तीन सितम्बर को इस मामले में सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय बिलासपुर के जस्टिस पी शाम कोशी ने जिला प्रशासन द्वारा जारी उपरोक्त आदेश को निरस्त कर दिया। मामले में अधिवक्ता अंजिनेष अंजय शुक्ला ने समिति की ओर से दलील पेश करते बताया था कि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक गरियाबंद, जिला विपरण अधिकारी गरियाबंद एवं याचिकाकर्ताओं के मध्य त्रीपक्षीय अनुबंध हुआ था। इसके अनुरूप जिला विपणन अधिकारी को धान खरीदी दिनांक से 72 घंटों के अंदर बंपर लिमिट स्टाक होने पर या धान खरीदी समय के एक महीने के भीतर परिवहनकर्ता के माध्यम से धान का उठाव कराना था। परंतु विपणन अधिकारी ने दिसंबर 2019 तक परिवहनकर्ता नियुक्त नहीं किया। ना ही किसी प्रकार का टेंडर बुलाया गया। जिससे एकत्रित धान तय सीमा से अधिक हो गयी।
20 फरवरी 2020 तक की अवधी मे धान अधिक हो जाने के कारण धान के रख-रखाव मे परेशानी होने लगी और इस समय असमय बारिश से धान सड़ गया और परिवहन ना होने से धान की सुखद बढ़ गयी। स्थानीय प्रशासन ने इसकी जिम्मेदारी याचिकाकर्ताओ के उपर डालते हुए वसुली की कार्यवाही तय कर दी थी। अधिवक्ता ने इससे संबंधित दस्वावेज प्रस्तुत कर न्यायलय से अनुरोध किया कि समितियो के विरूध्द जारी आदेश को निरस्त किया जाएगा।
अधिवक्ता का पक्ष सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने भी प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर प्रथम दृष्टया समितियों को दोषी नहीं माना और जिला प्रशासन के वसूली आदेश को स्थगित कर दिया है, तथा जाँच उपरांत दोषियों से वसूली करने के निर्देश दिए। इससे जिला प्रशासन द्वारा शार्टेज व कमी की जो जिम्मेदारी समितियों पर थोप दी गयी थी, उससे समितियों को मुक्ति मिल गई हैं ।